क्या आपको इस बात से आपत्ति है
कि आज जब देश में नायकों का घोर अकाल है,
दशरथ माँझी संकल्प और प्रेरणा की गंगोत्री बनकर उभरे हैं?
कबीर को स्वीकारने में आपने 400 साल लगा दिए।उन्हीं कबीर की परंपरा के हैं माँझी।
कोई जाति-मूलक केमिकल लोचा तो आपको नहीं सता रहा?
ऐसा है तो सिर्फ एक काम करिए कि रामायण के वाल्मीकि और महाभारत के व्यास की जात पता कर लीजिए और बताइए कि इनके बिना आप अधूरे हैं कि नहीं?
अगर हाँ तो अब दशरथ माँझी के बिना भी आपका काम नहीं चलेगा।
क्या आपने अपने बेटे-बेटियों और पोते-पोतियों को यह बात बताई है?
देर मत करिये, वरना इतिहास आपको माफ नहीं करेगा ।
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