Saturday, August 22, 2015

दशरथ माँझी ने छेनी-हथौरा-कुदाल से पहाड़ पर एक महाकाव्य रचा

दशरथ माँझी
एक भाव का नाम है,
एक संकल्प का नाम है,
एक भारतीय आत्मा के अनंत और संघनित प्रेम का नाम है,
सदियों से अपमान और अवमानना के शिकार लोगों के अनहद देशराग का नाम है,
बुद्धि पर विवेक की विजय का नाम है,
व्यष्टि पर समष्टि के जयघोष का नाम है,
एक ऐसा नाम जो पूरे देश को , उसकी क्षत-विक्षत आत्मा को उसकी गरिमा को वापस दिलाने की क्षमता रखता है,
और,
हजारों साल पहले, जैसे वाल्मीकि ने भारत की श्रेष्ठ कथा-परंपराओं को सूत्रबद्ध कर 'रामायण' के मार्फत भारत को एकता के सूत्र में बाँधने का महाप्रयास किया था,
भगीरथ ने गंगा को धरती पर उतारा था,
हे मित्रो,
दशरथ माँझी ने पहाड़ को काटकर सिर्फ सड़क नहीं बनाई है,
उन्होंने पत्थर पर छेनी-हथौरा-कुदाल से एक महाकाव्य रचा है जिसके मूल में है श्रम का सौन्दर्य,
जिसके बिना 'इंडिया' मन की और
'भारत' तन की गुलामी से मुक्त न हो सकेगा...

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