तो लगे हाथ ये भी कह देते कि इतनी इंग्लिश-विंग्लिश जान के भी--
कितने पेटेंट कराये?
कितने मौलिक शोध कियो?
कितने सामाजिक अन्वेषण कियो?
जनता तक सुविधाएँ पहुँचाने के लिए कौन सी असरदार तरकीबें निकालीं?
और तो और,
इस देश को भाँति-भाँति से गरियाने के सिवा कोई काम कियो?
भारतीय मन को साधा ?
साधा तो नकल मारी या अकल से कुछ कियो?
खैर, चन्द्रगुप्त तो बिखरे पड़े हैं...
उन्हें पहचाने, ऐसा चाणक्य चाहिए जिसकी संभावना को समृद्ध करना हमारा सामूहिक दायित्व है...
आपको भी शिक्षक दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ!
No comments:
Post a Comment