Saturday, September 12, 2015

हिन्दी के खंभे: बाजार, इंटरनेट, मोबाइल, और भारतीय भाषाओं से गहरा रिश्ता

हिन्दी पखवाड़ा स्पेशल

हिन्दी के सेवादार रूदाली करते रहें...
लेकिन हिन्दी के मजबूत खंभे हैं:
बाजार,
इंटरनेट-मोबाइल
और
शेष भारतीय भाषाओं से
गहरा रिश्ता।

कोई शक?
किसी भी डिजिटल कंपनी से
दरयाफ्त कर लीजिए
कि उसका नया धंधा
ज्यादा अंग्रेज़ी से आता दिख रहा है
या हिन्दी से?

पूरे यूरोप की जितनी आबादी है
उससे ज्यादा
हिन्दी भाषा का बाजार है।
वहाँ यह बाजार
दर्जन से ज्यादा भाषाओं का है
और
यहाँ अकेली  हिन्दी का है।
दोस्तो,
दृष्टि बदलिए, दृश्य बदल जाएगा
लेकिन
आप तैयार हैं कि नहीं
ये तो आप ही जानते हैं ।

वैसे,
बाजार अब सूँघ चुका है
हिन्दी की
मराठी, गुजराती, बाँग्ला,
उड़िया, असमिया, पंजाबी,
तेलुगु, तमिल,मलयालम, कन्नड़ की
संभावना को ।

सब के सब 100 करोड़
मोबाइल कनेक्शन पर
सवार हो
चल पड़े हैं
गाते हुए कोई पुराना तराना:

अब न रोके कोई, अब न टोके कोई।

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