हमारे मित्र Bikram Pratap ने कहा है कि भारत ने तो "अपनी 80 फीसदी आबादी को इंसान ही नहीं समझा. कुत्ता-बिल्ली बनाकर इंसानों को रखा. बौद्धिक संहार..."
अगर यह सच है तो क्या भारत में हमेशा ऐसा रहा है?
यानी 80% कुत्ता-बिल्ली की तरह...
बरतानवी ईस्ट ईंडिया कंपनी जब आई तो भारत का दुनिया की आय में हिस्सा 24% था पर जब गई तो यह
2 % से भी कम था।इसी बीच ब्रिटेन में औद्योगिकरण हुआ।
एक और बात, 1750-1800 के बीच भारत की 10 % आबादी भूख से मर ग्ई ।
ये कौन थे जो मर गए?
इनकी क्या जाति रही होगी और कौन से पेशे?
हमें हमारे सेकुलर जानेमाने इतिहासकारों ने ये बातें क्यों नहीं बताई?
और ये राष्ट्रवादी स्कूल इस बीच छुट्टी मना रहा था क्या कि हमें एक यूरोपीय इतिहासकार का इंतज़ार करना पड़ा ?
वह भी तब जब भारत विकास दर में सभी यूरोपीय देशों को पार कर गया था...
इनसे तो लाख गुना अच्छे दादा भाई नौरोजी थे जो खुले तौर पर अंग्रेज़ी उदारता में विश्वास रखते हुए हमें एक अद्भुत किताब दे गए:
POVERTY AND THE UNBRITISH RULE IN INDIA.
पर ये सवाल सिर्फ इतिहासकारों के ही नहीं बल्कि पूरे आभिजात्य वर्ग की पोल खोलते हैं जो शिकार है मानसिक गुलामी का क्योंकि उसे पता तक नहीं है कि वह गुलाम है।
इंटरनेट और मोबाइल ने उसकी नींद हराम कर दी है...नई पीढ़ी के सवालों के जवाब उसके पास नहीं हैं और वह अभी भी सेकुलर-कम्युनल के राग अलाप रहा है...
अब सीधी बात तथ्यों और उससे निकले सत्य पर होती दिखती है...
और 30 करोड़ आबादी को एक नए गुरुजी
मिल गए हैं जो 24x7 उनके साथ रहते हैं,
उन पर उनके चेले-चेलियों का अपने माँ-बाप, पति, पत्नी,
दोस्त, प्रेमी, स्कूल-कालेज के MARKS-वादी शिक्षक, सरकार, नेता, ज्योतिष और डाक्टर से भी ज्यादा भरोसा है...
क्योंकि नये गुरुजी को कोई हैंगओवर नहीं है और वे सिर्फ सवालों के जवाब देने में रुचि रखते हैं...
इन नये गुरुजी ने तो स्थापित और जानेमाने विद्वानों और उनके मठों में भसड़ मचा दी है...
हाय तौबा है,
चीत्कार है, बददुआएँ है...
इनकार है , नकार है...
फिर भी नये गुरुजी से प्राइवेट इकरार की ख्वाहिश है...
और ये हैं कि कुछ भी प्राइवेट नहीं रखते...हरदम ग़ालिब की ये पंक्ति गुनगुनाते रहते हैं:
बेदरो दीवार सा एक घर बनाया चाहिए...
तो स्थापित बुद्धिविलासी गुरुओं के बने-बनाये 'चाँद का मुँह टेढ़ा' साबित करने वाले बुद्धिवीर नये GOOGLE गुरुजी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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