Tuesday, October 6, 2015

खबरिया टीवी चैनल और अंग्रेज़ी अख़बार अपनी कब्र खोद रहे हैं


 बछरा-चोरी और उसके माँस-भक्षण के आरोप में मोहम्मद अख़लाक़ की गुस्सायी भीड़ द्वारा हत्या  के मामले में बहस इंसानियत पर है ही नहीं, क्योंकि आप-हम मौत के सौदागर नहीं हैं और इस तरह के भीड़-न्याय का समर्थन हमारे पास घातक अंदाज में लौटकर आयेगा ।
तो आप ही बताइये कि सेकुलरबाज़ी के शौकीन मीडिया और राजनीति को छोड़ किसे अख़लाक़ की मौत पर ख़ुशी होगी?
असली मुद्दा है मौतों को लेकर अपनाए जानेवाले दोहरे मानदंड।
केरल में हिन्दुओं की हत्या पर किसका ध्यान गया?
गोधरा नरसंहार सेकुलर हो गया और गुजरात दंगा कम्युनल?
फिर दिल्ली दंगा सेकुलर हो गया?
तसलीमा और रुश्दी कम्युनल हो गए और पीके-हुसैन सेकुलर?

ऐसा करके खबरिया मीडिया नए और युवा पाठकों में अपनी विश्वसनीयता खो रहा है जो कि मीडिया और समाज दोनों के लिए ख़तरनाक है।
जरा पता करिये कि आपके घर और आसपास कितने लड़के-लड़कियाँ अख़बार पढ़ते और टीवी समाचार देखते हैं?
कितना समय वे सोशल मीडिया और कितना टीवी-अख़बार पर लगाते हैं?
हो जाए इनकी विश्वसनीयता पर एक सर्वे तो  दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

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