भारतीयता और देसी दृष्टि का जितना नुकसान अकेले जेएनयू ने किया है उतना देश के सभी विश्वविद्यालयों ने मिलकर भी नहीं।इसमें भी इतिहास विभाग का जो अराष्ट्रीय कर्म है वह तो
पाश्चाताप और सजा से भी परे है और जिसे केवल माफ किया जा सकता है।
(नोट: पोस्ट को लिखने वाला भी जेएनयू का ही है और उसे इस पर गर्व है।)
पाश्चाताप और सजा से भी परे है और जिसे केवल माफ किया जा सकता है।
(नोट: पोस्ट को लिखने वाला भी जेएनयू का ही है और उसे इस पर गर्व है।)
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