Tuesday, February 23, 2016

मैं हूँ मूसहर तू मूसबिल्ला, अख़लाक़ुल्ला अख़लाक़ुल्ला...

डा त्रिभुवन सिह (Tribhuwan Singh ) ने कुछ समय पहले एक पैरोडी बनाई थी :
 मैं हूँ मूसहर तू मूसबिल्ला
अख़लाक़ुल्ला अख़लाक़ुल्ला।

संदर्भ था #अख़लाक़_सिंड्राॅम से ग्रस्त #मूसबिल्ला समाज का अपने सेकुलर-लिबरल-वामपंथी-इस्लामी बिलों से बिलबिलाते हुए निकलकर विधवा विलाप करना।

जब #मालदा , #पूर्णिया और #पुणे की हिंसा और हत्याएं हुईं तो ये बिल में समा गए।फिर #वेमुला और #जेएनयू के मामले आए तो मूसबिल्ले दलबल बाहर निकले।

तो यारो , हाथ में राष्ट्रीयता का तेल पिलाये गहरे लाल-लाल डंडे लेकर तैयार रहिए और इन #मूसबिल्लों की आवाजाही पर नजर रखिए। एक समय ऐसा होगा जब आपके अंदर का #मूसहर जागेगा और अपने सहजबोध से बिना किसी को मौका दिए वार पर वार करेगा।तब हमारे राष्ट्र रूपी खेत को चाटने वाले मूसबिल्ले अपने बिलों में वापस जाने लायक नहीं रहेंगे क्योंकि उन बिलों में आप और हम जैसे मूसहर #जयहिंद और #वंदेमातरम का पानी भर चुके होंगे।
फिर इस देश में भारत माँ के सच्चे सपूतों यानी मूसहरों का राज होगा और मूसबिल्ला-शासन का अंत।मजे की बात यह है कि मूसबिल्लों को इस बात की अंदेशा हो चला है कि मूसहर अब समझदार हो रहे हैं।
#PMO #HMO #NSA #AjitDobhal

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