Monday, May 2, 2016

दू पैसा के सतुआ आधा गो पियाज गे ...

"दू पैसा के सतुआ आधा गो पियाज गे
पत्थर फोड़े जैबै भौजी जमालपुर पहाड़ गे।"

(सौजन्यः Raj Kishor Sinha )

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यहाँ पत्थर फोड़ने के प्रति जो रागात्मक लगाव है वह श्रम के सौन्दर्य की प्रतिष्ठा करता है जैसे कबीर को अपने जुलाहा होने पर गर्व था।
लेकिन यह बात अंग्रेज़ों की मानस संतान शूद्र-विरोधी 'दलित' क्या समझेंगे? दलित- दमित या कुचला हुआ कहलाये जाने की आकाँक्षा रखना एक मानसिकता है जो लाईलाज है।
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सोये हुए को जगाया जा सकता है, सोने का नाटक करनेवाले को नहीं।
अगर वह जग गया तो उसे सोते हुए दिखने की सुपारी के पैसे वापस करने पड़ेंगे जो आकाओं ने उन्हें दिए हैं।

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