असली दोष जेएनयू के देशतोड़क शिक्षकों का है, छात्रों का नहीं...
जेएनयू से पढ़े लोगों को वामपंथियों ने मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।लेकिन इसके लिए छात्र नहीं, इनके बुद्धिविलासी और बुद्धिपिशाच शिक्षक दोषी हैं जो जेएनयू को एक अलग गणराज्य मानते हैं जिसका पाकिस्तान के तर्ज पर मकसद है:
भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह!
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आज ट्रेन और बस में जेएनयू वालों की पिटाई तक होने लगी है।
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वाह रे शिक्षक!
एक चाणक्य थे जिन्होंने चन्द्रगुप्त पैदा किया और एक आप हैं जो देशतोड़क के पर्याय बन गए हैं।
किसी भी और देश में आप होते तो टँग गए होते।आपकी मानसिक मातृभूमि पाकिस्तान में भी आपका वही हाल होता जो वहाँ फ़ैज़ और इब्ने इंशा का हुआ।
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लेकिन भला हो सोशल मीडिया और संचार तकनीक का कि आपने अपनी घोषित मूर्खताओं से लोगों में सात्विक क्रोध पैदाकर मात्र तीन महीनों में राष्ट्रीयता को जितना समृद्ध किया है उतना नुकसान आप 45 सालों की रणनीतिक चालाकी से भी नहीं कर पाए थे।
कम-से-कम इस बात के लिए आप बधाई के पात्र हैं ही।
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