Thursday, June 2, 2016

जनता कायर, अपराधी नायक: बिहार में बहार है...

जनता कायर, अपराधी नायक: बिहार में बहार है...
बिहार और बंगाल के लोग अंदर से घोर कायर हो गए हैं और इसीलिए अपराधियों को अपना नायक मानने लगे हैं। आपसी छोटी-छोटी बातों पर उन्हें इतना गुस्सा आता है कि
समाज-हित की बड़ी बातें उन्हें बौनी लगने लगती हैं। छोटे-मोटे झगड़े में जान लेने-देने पर उतारू हो जाएँगे लेकिन समाज-हित के किसी बड़े मुद्दे पर एकदम केचुए जैसा व्यवहार करेंगे।
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पिछले 30 सालों में जिन्हें जनसमर्थन मिला उनकी लिस्ट बनाइए और बताइए कि वे कौन हैं, नायक या खलनायक? खलनायकी को वीरता से काटने के बजाय लोगों ने खलनायकी से काटने का आसान रास्ता चुना।यही वजह है कि नायक की संभावना वाला नेता भी सर्कुलेशन में बने रहने के लिए खलनायकी में ही अपना फायदा देखता है।
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इस खलनायकी की पुख्ता ट्रेनिंग आजकल विश्वविद्यालयों में ही मिल जाती है जहाँ सबको इम्तहान से पहले मालूम होता है कि टाॅप कौन करेगा। यहाँ भी अकादमिक योग्यता के बजाय जात-पाँत या दलगत राजनीति और पैसे लेकर छोटे-बड़े सब काम कराने का बोलबाला रहता है।हाल में बंगाल के एक विश्वविद्यालय में एक विभाग की सीट बढ़ा दी गई और इसे 'तृणमूल कोटा' का अनौपचारिक नाम दिया गया है क्योंकि पार्टी के लोग ही मुद्रा-विमोचन के बाद इस बात की तसदीक करते हैं कि किसको प्रवेश मिलेगा।
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गया में आदित्य की हत्या को सिर्फ ओवरटेकिंग से जोड़कर देखनेवाले इस बात की अनदेखी कर रहे हैं कि मामला रंगदारी टैक्स का भी हो सकता है क्योंकि मृतक एक व्यवसायी का पुत्र था।वैसे ही जैसे 2004 में सीवान के दुकानदार चाँद बाबू के दो बेटों की हत्या दो लाख की रंगदारी नहीं देने की वजह से हुई थी।बाद में (2014) बड़े बेटे राजीव की भी हत्या हो गई सुशासन बाबू के राज में। राजीव अपने छोटे भाइयों के तेजाब से जलाकर मारे जाने का चश्मदीद गवाह था।

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