बिहार -1950: सर्वाधिक विकसित राज्यों में एक
बिहार-2016: गाली, ग़रीबी, अपराध का पर्याय
■ ३/४ दशको से पहले बिहारी शब्द गाली नही था. इधर बना. पहले ये मजदूरों का पर्याय हुआ फिर बेबसी और गरीबी का. बची कसर लालू ने पूरी कर दी.
■ लालू कालमें ही बिहारी मखौल का पात्र बना. फिल्मों ने लालूशैली को मूर्खता और रंगदारी के प्रतीक के रूप में पेश करना शुरू किया और लालू रबरी ही बिहार के रोल माडल बन गए. बिहारी अस्मिता लगातार आहत होती रही. किसी ने कोई प्रतिरोध नही किया.
■ बिहारी नेता, राजेन्द्र बाबू, जेपी और श्रीकृष्ण सिंह गाँधी के प्रिय शिष्य नेहरु को अपने प्रतिद्वंदी नजर आते थे. गांधी ने नेहरु के लिए सुभाष बोस को किनारे कर दिया था, आजादी के समय भारत की सत्ता किसके हाथ दी जाए - इस प्रश्न के दो विकल्प नजर आते थे- नेहरु और राजेन्द्र बाबू. राजेन्द्र बाबू को कांग्रेस में ज्यादा समर्थन था लेकिन गांधी को तो नेहरू ही पसंद थे. सो सत्ता उन्हें मिली लेकिन साथ ही बिहार के प्रति एक द्वेष भी कहीं न कहीं नेहरू के मन में रह गया. उसका परिणाम बिहार को भुगतना पड़ा. और आज भी भुगतना पड़ रहा है.
■ आजादी के समय उद्योग के मामले में बिहार देश का पहला राज्य था. डालमियानगर, जमशेदपुर जैसे औद्योगिक शहर यहीं थे. इस बहाने बिहार को सबसे विकसित मानते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बिहार को प्रतिव्यक्ति विकास राशि नेशनल एवरेज से चार रूपए प्रति व्यक्ति कम दी गई. यानी हर बिहारी पहली पञ्च वर्षीय योजना के पांच वर्षों में शेष भारत से २० रूपए पीछे हो गया. ये बीस रूपए आज के बीस रुपयों की उलना में सौ गुना ज्यादा मूल्य के थे.
■ बाद में ये आर्थिक/विकास फासला घटने के बदले हर पञ्च वर्षीय योजना में बढ़ता गया. एक तो विकास राशि का कम आवंटन ऊपर से यहाँ के चोर नेता और जातिवादी समाज - बिहार लगातार पिछड़ता गया. पिछड़ेपन के असली कारकों की पहचान कभी नही की गई. और अब ये दिन हैं कि बिहारी शब्द मजदूर, अपराधी, गरीब और शरणार्थी का पर्याय हो गया है.
■ बिहार के लोगों ने कभी ये हिसाब किया ही नही कि उनका कितना रुपया इस देश पर बकाया है. वो बस पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम में मजूरी कर के खुश हैं. हम जाग्रत नही हैं लेकिन इसका मतलब ये भी नही कि कोई भी ऐरा गैर हमे गालियाँ देकर निकल ले और हम सहन करते रहें.
( श्री Gunjan Sinha की वाल से।)
27.9
बिहार-2016: गाली, ग़रीबी, अपराध का पर्याय
■ ३/४ दशको से पहले बिहारी शब्द गाली नही था. इधर बना. पहले ये मजदूरों का पर्याय हुआ फिर बेबसी और गरीबी का. बची कसर लालू ने पूरी कर दी.
■ लालू कालमें ही बिहारी मखौल का पात्र बना. फिल्मों ने लालूशैली को मूर्खता और रंगदारी के प्रतीक के रूप में पेश करना शुरू किया और लालू रबरी ही बिहार के रोल माडल बन गए. बिहारी अस्मिता लगातार आहत होती रही. किसी ने कोई प्रतिरोध नही किया.
■ बिहारी नेता, राजेन्द्र बाबू, जेपी और श्रीकृष्ण सिंह गाँधी के प्रिय शिष्य नेहरु को अपने प्रतिद्वंदी नजर आते थे. गांधी ने नेहरु के लिए सुभाष बोस को किनारे कर दिया था, आजादी के समय भारत की सत्ता किसके हाथ दी जाए - इस प्रश्न के दो विकल्प नजर आते थे- नेहरु और राजेन्द्र बाबू. राजेन्द्र बाबू को कांग्रेस में ज्यादा समर्थन था लेकिन गांधी को तो नेहरू ही पसंद थे. सो सत्ता उन्हें मिली लेकिन साथ ही बिहार के प्रति एक द्वेष भी कहीं न कहीं नेहरू के मन में रह गया. उसका परिणाम बिहार को भुगतना पड़ा. और आज भी भुगतना पड़ रहा है.
■ आजादी के समय उद्योग के मामले में बिहार देश का पहला राज्य था. डालमियानगर, जमशेदपुर जैसे औद्योगिक शहर यहीं थे. इस बहाने बिहार को सबसे विकसित मानते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बिहार को प्रतिव्यक्ति विकास राशि नेशनल एवरेज से चार रूपए प्रति व्यक्ति कम दी गई. यानी हर बिहारी पहली पञ्च वर्षीय योजना के पांच वर्षों में शेष भारत से २० रूपए पीछे हो गया. ये बीस रूपए आज के बीस रुपयों की उलना में सौ गुना ज्यादा मूल्य के थे.
■ बाद में ये आर्थिक/विकास फासला घटने के बदले हर पञ्च वर्षीय योजना में बढ़ता गया. एक तो विकास राशि का कम आवंटन ऊपर से यहाँ के चोर नेता और जातिवादी समाज - बिहार लगातार पिछड़ता गया. पिछड़ेपन के असली कारकों की पहचान कभी नही की गई. और अब ये दिन हैं कि बिहारी शब्द मजदूर, अपराधी, गरीब और शरणार्थी का पर्याय हो गया है.
■ बिहार के लोगों ने कभी ये हिसाब किया ही नही कि उनका कितना रुपया इस देश पर बकाया है. वो बस पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम में मजूरी कर के खुश हैं. हम जाग्रत नही हैं लेकिन इसका मतलब ये भी नही कि कोई भी ऐरा गैर हमे गालियाँ देकर निकल ले और हम सहन करते रहें.
( श्री Gunjan Sinha की वाल से।)
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