Thursday, December 8, 2016

मौत का इंतजार करते इन सेकुलर-वामी-वोटबाज़ गिद्धों को आशीर्वाद दोगे या अभिशाप?

1890 के दशक में लेनिन के कहने पर रूस में अकालपीड़ित लोगों को कॉमरेडों ने इसलिये मरने के लिये छोड़ दिया था कि इससे तनाव फैलेगा और क्रान्ति की देवी उनका अतिशीघ्र वरन करेगी। 1917 में क्रान्ति आई और 1991 में चली गई। अब भारत में उसका इंतज़ार हो रहा है नोटबंदी के बाद हुई मौतों की संख्या बढ़ाकर।
हे स्वर्गासीन पैग़म्बर मार्क्स,
मौत का इंतजार करते इन सेकुलर-वामी-वोटबाज़ गिद्धों को आशीर्वाद दोगे या अभिशाप?
17.11.16

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