जेएनयू के छात्र अगर इसबार चूके तो गए काम से
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव-2016 में वोटरोंं के पास दो ही विकल्प हैं:
■ पहला, वे भारत की बर्बादी तक जंग जारी रखनेवालों को वोट देकर कैंपस के बाहर बसे भारत से लात-जूते खाएँ , बेरोजगारी झेलें और गद्दार कहलायें।
■ दूसरा, वे भारत की बर्बादी के सपने देखनेवालों को करारी शिकस्त देकर जेएनयू की 'गद्दारों का अड्डा' वाली छवि को बदल डालें; अपना खोया सम्मान वापस पाएँ, बेरोज़गारी झेलने से बचें और अपना तथा देश का भविष्य सुधारें।
■ पहला विकल्प 99 प्रतिशत छात्रों के भविष्य को ख़राब करनेवाला है और देशतोड़क है। दूसरा विकल्प 99 प्रतिशत छात्रों के भविष्य को बचानेवाला है और देशजोड़क है।
■ याद रहे जेएनयू से पास होने के बाद ज्यादातर लोग नौकरी ढूँढते हैं, नौकरी सृजित नहीं करते; और एक गद्दार भी ईमानदार को ही नौकरी देना चाहता है, गद्दार को नहीं।
■ इसलिये जेएनयू के शिक्षक-कर्मचारी-छात्र सबका कर्त्तव्य है कि वे समय की माँग को समझें और अपने विश्वविद्यालय के माथे पर लगा जयचंदी दाग मिटा दें।
■ इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी विज्ञान और भाषा विभागों के छात्र-छात्राओं की है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बिना बंद किये ही जेएनयू के SSS, SIS और SLL& CS बंद हो जाएँगे क्योंकि वहाँ धीरे-धीरे ADMISSION होना बंद हो जाएगा जब वहाँ के pass out को नौकरी नहीं मिलेगी।
■ हरियाणा में 25000 करोड़ की लागत से एक विश्वविद्यालय खोला जा रहा है जहाँ से सालाना एक लाख छात्र पास होकर निकलेंगे और जिन्हें बेहतरीन स्तर की ट्रेनिंग मिलेगी। ऐसे में 'देशतोड़कों के अड्डे' जेएनयू से निकले लोगों को कौन पूछेगा?
4।9।16
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव-2016 में वोटरोंं के पास दो ही विकल्प हैं:
■ पहला, वे भारत की बर्बादी तक जंग जारी रखनेवालों को वोट देकर कैंपस के बाहर बसे भारत से लात-जूते खाएँ , बेरोजगारी झेलें और गद्दार कहलायें।
■ दूसरा, वे भारत की बर्बादी के सपने देखनेवालों को करारी शिकस्त देकर जेएनयू की 'गद्दारों का अड्डा' वाली छवि को बदल डालें; अपना खोया सम्मान वापस पाएँ, बेरोज़गारी झेलने से बचें और अपना तथा देश का भविष्य सुधारें।
■ पहला विकल्प 99 प्रतिशत छात्रों के भविष्य को ख़राब करनेवाला है और देशतोड़क है। दूसरा विकल्प 99 प्रतिशत छात्रों के भविष्य को बचानेवाला है और देशजोड़क है।
■ याद रहे जेएनयू से पास होने के बाद ज्यादातर लोग नौकरी ढूँढते हैं, नौकरी सृजित नहीं करते; और एक गद्दार भी ईमानदार को ही नौकरी देना चाहता है, गद्दार को नहीं।
■ इसलिये जेएनयू के शिक्षक-कर्मचारी-छात्र सबका कर्त्तव्य है कि वे समय की माँग को समझें और अपने विश्वविद्यालय के माथे पर लगा जयचंदी दाग मिटा दें।
■ इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी विज्ञान और भाषा विभागों के छात्र-छात्राओं की है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बिना बंद किये ही जेएनयू के SSS, SIS और SLL& CS बंद हो जाएँगे क्योंकि वहाँ धीरे-धीरे ADMISSION होना बंद हो जाएगा जब वहाँ के pass out को नौकरी नहीं मिलेगी।
■ हरियाणा में 25000 करोड़ की लागत से एक विश्वविद्यालय खोला जा रहा है जहाँ से सालाना एक लाख छात्र पास होकर निकलेंगे और जिन्हें बेहतरीन स्तर की ट्रेनिंग मिलेगी। ऐसे में 'देशतोड़कों के अड्डे' जेएनयू से निकले लोगों को कौन पूछेगा?
4।9।16
No comments:
Post a Comment