धीरे-धीरे लेकिन पक्के तौर पर उन लोगों से
घिन-सी होने लगी है जो अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत को ज्ञान एवं विवेक का पर्याय मानते हैं; मजहब और धर्म में अंतर नहीं करते; और, बौद्धिक रूप से इतने कायर हैं कि ख़ुद की निग़ाह से ख़ुद को नहीं देख सकते।इसमें प्रोफेसर और पत्रकार अव्वल हैं। क्या करें ऐसे फेसबुकिया मित्रों का, मार्गदर्शन कीजिये।
22।9
घिन-सी होने लगी है जो अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत को ज्ञान एवं विवेक का पर्याय मानते हैं; मजहब और धर्म में अंतर नहीं करते; और, बौद्धिक रूप से इतने कायर हैं कि ख़ुद की निग़ाह से ख़ुद को नहीं देख सकते।इसमें प्रोफेसर और पत्रकार अव्वल हैं। क्या करें ऐसे फेसबुकिया मित्रों का, मार्गदर्शन कीजिये।
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