जैसे गर्दन पर बैठी मक्खी भगाने के लिए गर्दन नहीं काट देते वैसे ही कुछ भ्रष्ट बैंक अफसरों पर गुस्सा उतारते वक़्त सभी बैंक कर्मचारियों को भ्रष्ट या देशद्रोही कहना ठीक नहीं। ये बैंकवाले कितने भी बुरे हों, ज्यादातर सेकुलर-वामियों जैसे आत्म-घृणा और मानसिक गुलामी के शिकार देशविरोधी नहीं हो सकते।
12.12
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