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Sunday, November 9, 2014
कविताः ख़ुर्शीद को याद करते हुए
महीनों से तुम्हें जीया सा लगता है
मौत से पहले मुआ सा लगता है
तुम्हारा वजूद अपना सा लगता है,
अकेले खुद से खतरा सा लगता है।
कहते हैं तर्क तूने इस्लाम से किया,
हमें तो शाज़िशेआदम सा लगता है।
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