ट्रक ड्राइवरों को सलाम जिन्होंने नेताजी-भगत सिंह-आजाद को बचाये रखा
नेताजी सुभाषचंद्र बोस-भगत सिंह- चन्द्रशेखर आजाद जैसे राष्ट्रीय नायकों की ताजपोशी बस और ट्रकों पर बनी तस्वीरों में हुई...
जबकि सिर्फ 'तन से भारतीय, मन से यूरोपीय' नेहरू बुद्धिजीवियों के गले का हार बन गए...संसद से सड़क तक उनके नाम की पट्टियाँ लग गईं...किताबों में उनकी वीरगाथाएँ छा गईं ...
काँग्रेस पार्टी नेहरू के 'गाँधी परिवार' के लिए फैमिली बिजनेस में तब्दील हो गई...
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तो आप ही बताइए, बस और ट्रक ड्राइवरों ने राष्ट्रीय भावना को बचाया या नेहरू मार्का बुद्धिजीवियों ने?
जेएनयू के देशतोड़क प्रोफेसर वरेण्य हैं या
बस और ट्रकों के वे ड्राइवर जिन्होंने...
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, अरुणाचल से कच्छ तक...नगर-नगर, डगर-डगर, चौक-चौराहे, होटल-ढाबे...वन-पहाड़, नदी-घाटी-झरने, बीहड़-रेगिस्तान...सब जगह और सबको राष्ट्र-नायकों के दर्शन कराये ?
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