नेपाल: क्या प्रामाणिक जनाक्रोश को हाईजैक किया जा सकता है?
नेपाल के मौजूदा जनांदोलन को समझने के लिए यह देखना होगा कि जनता का गुस्सा किस दिशा में ले जाया जाएगा। जनता आज भ्रष्ट, धर्मविरोधी और विदेशी-प्रेरित दलों से पूरी तरह निराश है। यह गुस्सा स्वाभाविक रूप से “हिंदू राष्ट्र और लोकतांत्रिक राजतंत्र” की मांग की ओर जा सकता है, क्योंकि यही नेपाल की गहरी सांस्कृतिक जड़ है। यदि यह स्वर सशक्त हुआ तो संविधान में बदलाव, मिशनरी गतिविधियों पर नियंत्रण और हिंदू सांस्कृतिक पुनर्जागरण संभव है। लेकिन यह रास्ता पश्चिमी ताक़तों को मंजूर नहीं होगा।
दूसरा रास्ता है – बालेन शाह और सुदान गुरुंग जैसे नए चेहरे। ये शहरी युवाओं और मध्यम वर्ग को भ्रष्टाचार-विरोधी एजेंडे से जोड़ते हैं। इनका एजेंडा राजतंत्र या हिंदू राष्ट्र की स्पष्ट मांग नहीं है, बल्कि “नई राजनीति” और “क्लीन गवर्नेंस” है। यही कारण है कि पश्चिमी NGO, फंडिंग एजेंसियाँ और मिशनरी नेटवर्क इन्हें एक सुरक्षित विकल्प मान सकते हैं। इस मॉडल में जनता का असली असंतोष absorb हो जाएगा और सत्ता ऐसी सरकार के हाथों में जाएगी जो खुलकर धर्मविरोधी न भी हो, तो कम से कम मिशनरियों और बाहरी नेटवर्क के लिए रास्ता खुला रखेगी। यह वही पैटर्न है जो भारत में अरविंद केजरीवाल और यूक्रेन में जेलेंस्की के साथ देखा गया।
तीसरा परिदृश्य है – अगर कोई ठोस नेतृत्व न उभरा और आंदोलन बिखर गया, तो नेपाल अराजकता और अस्थिरता का शिकार होगा। बार-बार संविधान संशोधन, दल-बदल और हिंसक संघर्ष होंगे। इस स्थिति में चीन, पश्चिम और इस्लामी ताक़तें – सभी अपने-अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएँगी और नेपाल एक “buffer state” बन जाएगा।
संक्षेप में, नेपाल की जनता की भावना असली और प्रामाणिक है, लेकिन सवाल यह है कि इसे दिशा कौन देगा – हिंदू राष्ट्रवादी शक्तियाँ, पश्चिमी-प्रेरित पॉपुलिस्ट नेता या अराजकता पैदा करने वाली बाहरी ताक़तें। यही आने वाले समय का निर्णायक प्रश्न है।
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