Tuesday, November 11, 2014

ज्ञानपीठ 2013: जीवन की किताब से रूबरू कराते कवि केदारनाथ सिंह को ज्ञानपीठ

(http://aajtak.intoday.in/story/jnanpith-award-conferred-on-hindi-poet-kedarnath-singh-1-787157.html)

केदारनाथ सिंह को ज्ञानपीठ से खुद इस पुरस्कार की साख बढ़ी है.कोर्स की  किताबों के बहाने जीवन की किताब खोलते चलनेवाले वे विरल शिक्षक रहे हैं।उनकी क्लास से आप एक बेहतर इंसान होकर निकलते हैं.

निराला की कविता - वह तोड़ती पत्थर- जैसे वे पढ्रते हैं उसीसे आधी बात समझ में आ जाती है. फिर इस कविता से वे समाज, संस्कृति, औरत का संघर्ष, राजनीति, अर्थतंत्र सबकी परत दर परत खोलते चलते हैं.

हिंदी की लोकभाषाओं के अलावा वे अन्य भाषाओं के साहित्य पर नज़र रखते हैं। अमेरिकी कवि वाल्ट व्हिटमन के काव्य के ख्यात अध्येता हैं।उनका गद्य भी कविता की कसावट और तीव्रता का अहसास कराता है. वे हिंदी के सर्वाधिक पढ़े जानेवाले गद्यकारों में भी एक हैं।

उनकी ये कविता खुद उनकी तस्वीर खींचती लगती है:

उसके हाथ को
अपने हाथ में लेते हुए
मैंने सोचा

सारी दुनिया को
इसी तरह
नरम और गरम होना चाहिए ।

जीवन में  गहरी आस्था रखनेवाले केदारनाथ सिंह  1991 में सोवियत विघटन के बाद भी अविचल रहे जब तरक्कीपसंद अदब के पैरोकारों का एक बड़ा धरा रुदाली करते थकता नहीं था। गोयथे को याद करते हुए कहा:

विचारधाराएं सारी
मुरझा गईं हैं
पर जीवन वृक्ष
निरंतर हरा है।

कभी शब्द के विकास को लेकर अपने संस्कृत शिक्षक  को याद करते हुए कहते हैं:

कोई शब्द  'भ्रष्ट ' कैसे हो सकता है? उसका तो विकास होता है। जब यह सही है तो
फिर  किसी शब्दरूप को अपभ्रंश या बिगड़ा हुआ कहना  भी अवैज्ञानिक है।

यहाँ कबीर बरबस याद आते हैं:
संसकीरत जल कूप है
भाखा बहता नीर ।

केदारनाथ सिंह भी वैसे ही लौटते हैं अपनी भाषा में  जैसे कठफोरवा अपने कोटर में।

अंत में एक निजी सी बात । जेएनयू में कहते थे कि वे
अपने शोधकर्ताओं पर समय नहीं देते थे।मेरा सिनाॅप्सीस उन्होंने आधा दर्जन बार बदलवाया था। इस बीच मेरा विवाह हुआ और  उनका आशीर्वाद लेने हम नमूदार हुए।मेरी मेम साहिबा  की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने फरमाया:

मैंने इनसे एम.फिल करा लिया है, आप पीएच.डी करा लीजिए.
                                      -- चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

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