संता-बंता:सीआरपीएफ जवानों की हत्या पर सेकुलर चुप्पी
सीआरपीएफ जवानों की हत्या पर सेकुलर चुप्पी
संता: सीआरपीएफ जवानों की हत्या के खिलाफ धरना-प्रदर्शन क्यों नहीं करता कोई?
बंताः बेचारे हत्यारे ग़रीब आतंकवादी-माओवादियों के दुःख से कातर प्रदर्शनकारियों को इन सरकारी मौतों के लिए फुर्सत कहाँ?
संता: ये सेकुलर मौन -संवाद भी तो हो सकता है?
( नोट: भाई ई सिकुलर पलटन भारत के ग़रीब गुरबा की चिंता में इतना लगी हुई है कि भारत के 10 राज्यों में माओवादी नामधारी संगठनों के अरबों रूपये के वसूली के धंधे पर भी चुप रहती है। ये अर्द्धसैनिक बलों के जवान तो सीधे-सीधे वर्ग शत्रु हुए जो पूँजीवादी राज्य से मिले हुए हैं और फिर इनके वेतन से पल रहे बाल बच्चों में कोई भी सरकार के खिलाफ सशत्र विद्रोह में शामिल नहीं होगा। ऐसे में ये सब किस काम के? आखिर स्टालिन ने न चाहते हुए भी जनहित में करोड़ के लगभग बुर्जुवा टट्टुओं को मरवाया था या नहीं? फिर कमजोर दिल हिन्दुस्तानी कुछ दर्जन भर हत्याओं पर हिल जाते हैं।पिछले कुछ सालों में 2500 ही जवान तो मरे हैं। ऐसा ही रहा तो बेचारों को क्रांति भी आयात करनी पड़ेगी। कितनी बदनामी होगी ?)
संता: सीआरपीएफ जवानों की हत्या के खिलाफ धरना-प्रदर्शन क्यों नहीं करता कोई?
बंताः बेचारे हत्यारे ग़रीब आतंकवादी-माओवादियों के दुःख से कातर प्रदर्शनकारियों को इन सरकारी मौतों के लिए फुर्सत कहाँ?
संता: ये सेकुलर मौन -संवाद भी तो हो सकता है?
( नोट: भाई ई सिकुलर पलटन भारत के ग़रीब गुरबा की चिंता में इतना लगी हुई है कि भारत के 10 राज्यों में माओवादी नामधारी संगठनों के अरबों रूपये के वसूली के धंधे पर भी चुप रहती है। ये अर्द्धसैनिक बलों के जवान तो सीधे-सीधे वर्ग शत्रु हुए जो पूँजीवादी राज्य से मिले हुए हैं और फिर इनके वेतन से पल रहे बाल बच्चों में कोई भी सरकार के खिलाफ सशत्र विद्रोह में शामिल नहीं होगा। ऐसे में ये सब किस काम के? आखिर स्टालिन ने न चाहते हुए भी जनहित में करोड़ के लगभग बुर्जुवा टट्टुओं को मरवाया था या नहीं? फिर कमजोर दिल हिन्दुस्तानी कुछ दर्जन भर हत्याओं पर हिल जाते हैं।पिछले कुछ सालों में 2500 ही जवान तो मरे हैं। ऐसा ही रहा तो बेचारों को क्रांति भी आयात करनी पड़ेगी। कितनी बदनामी होगी ?)
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