चाहे जैसे हो नाश्ते से भोजन तक मोदी विरोध वाला आइटम ही चाहिए...
कुछ लोगों का अंधविश्वास आज भी पीछा नहीं छोड़ पाया कि वे तभी तक बुद्धिजीवि कहे जाएँगे जबतक मोदी विरोध का राग आलापेंगे । बिहार के तूफान पीड़ितों और नेपाल के साथ-साथ देश के कई राज्यों में भूकंप पीड़ितों की राहत के लिए त्वरित कार्रवाई भी अगर किसी बुद्धिजीवि को न नज़र आए तो उसकी बुद्धि पर कौन संदेह करेगा ! वैसे उन्हें "बुद्धिविलासी" कहना कैसा रहेगा?
फिर हममें कुछ को ऐसा क्यों लगता है कि हमारी निजी- पारिवारिक से लेकर अलग-अलग प्रांतों की भी जो जिम्मेदारियाँ हैं उन्हें भी मोदी जी ही निपटाएं ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें अब किसी और पर विश्वास नहीं रहा ?
या खुद से भी ज्यादा विश्वास मोदी जी पर है ?
या फिर खुद पर भी विश्वास नहीं रहा ?
कहीं हम अक्ल के अजीर्ण से तो ग्रस्त नहीं कि चाहे जैसे हो नाश्ते से भोजन तक मोदी विरोध वाला आइटम ही चाहिए?
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