महाभारत-2 की आहट सुनाई दे रही है?
शाँति के लिए युद्ध की आहट सुनाई दे रही है?
कोई क्या करे जब #कायरता को ही आभिजात्य वर्ग #माला की तरह पहन ले।सही है तर्क से काटना लेकिन तभी तक जब तक तर्क के लिए बुनियादी सहमति हो।
*
जब व्यवहार में तर्क की जगह #तलवार के इस्तेमाल को स्वीकृति मिल रही हो तो तर्क की जमीन को बचाय रखने के लिए तलवार उठाना पड़ता है और ऐसा योजना बनाकर नहीं, स्वतःस्फूर्त होता है।
*
दूसरी बात, हिन्दुस्तान का राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी #अतीतजीवी और #भारत_व्याकुल है, साथ ही शुतुरमुर्गी भी।उसकी #मानसिक_गुलामी ने उसकी #रीढ़ की हड्डी समाप्त कर दी है।इसलिए वह बुद्धिविलासी, बुद्धिवंचक या बुद्धिविरोधी तो हो सकता है लेकिन उसके बुद्धिवीर होने और फिर बने रहने की संभावना बहुत ही क्षीण रहती है।
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जिस देश में 1000 बरसों तक आक्रांताओं के शासन का #इतिहास रहा हो वहाँ के लोगों ने अपनी #गुलामी_के_कारणों की पड़ताल करते हुए अब तक एक भी मुकम्मल किताब क्यों नहीं लिखी? चाहे वामपंथी हों या राष्ट्रवादी या मध्यमार्गी।
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आप जो तब्दीली देख रहे हैं, उसके पीछे मुख्य रूप से #मोबाइल/ #इंटरनेट/ #सोशल मीडिया है जिसने सदियों के #अपमान, बलात्कार और नरसंहार की #छुपी_कथा को सर्वसुलभ करा दिया है।इसलिए #हिन्दुओं का एक तबका #मुसलमान बनेगा, बनकर रहेगा।वह हिन्दू बने रहने के लिए मुसलमान यानी कट्टर बनेगा।इसी में भारत की गति है।
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अगले कुछ समय में #मोदी को बहुत #उदार नेता (जैसे आज आडवानी हैं) और संघ को उदार संगठन माना जाने लगेगा क्योंकि देश के अनेक हिस्सों में '#हिन्दुओं_के_मुसलमान' अपने लिए नए नेता और नए संगठन खड़े कर लेंगे।और यह भी #सनातन का ही हिस्सा होगा, नया अध्याय होगा जो '#शांति_के_लिए_युद्ध' के नाम से लिखा जाएगा और जिसके लेखक लोक बुद्धिवीर होंगे न कि शास्त्रीय बुद्धिविलासी-बुद्धिजीवी।यह तय है।यानी पहले से मौजूद गुलामी-जनित शाँति के लाभार्थियों के खिलाफ लोकशांति के योद्धाओं का बिगुल बजेगा जिसकी पदचाप सुन बुद्धिजीवी टाइप लोग हलकान हो रहे हैं।
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अंतिम बात।#शास्त्रार्थ और #युद्ध की तैयारी किसी भी गतिमान समाज में साथ-साथ चलते हैं , अलग-अलग नहीं।क्योंकि, 'बिनु भय होहीं न प्रीत'।
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इस युद्ध के नायकों को अपधे दुश्मनों से असली खतरा नहीं होगा।असली खतरा होगा गुलामी और कायरता को विजयमाल की तरह जप रहे बुद्धिजीवियों से जो सनातन का एकपक्षीय रूप पेश करेंगे।
लेकिन इन्हें कोई बताए कि सनातन को इस स्तर तक पहुँचने में 'वैदिक हिंसा हिंसा न भवति' और 'महाभारत' से गुजरना पड़ा।काश पिछले 1500 सालों में महाभारत-2 हो गया होता तो आज जैसी नौबत नहीं आती।खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद ।
कोई क्या करे जब #कायरता को ही आभिजात्य वर्ग #माला की तरह पहन ले।सही है तर्क से काटना लेकिन तभी तक जब तक तर्क के लिए बुनियादी सहमति हो।
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जब व्यवहार में तर्क की जगह #तलवार के इस्तेमाल को स्वीकृति मिल रही हो तो तर्क की जमीन को बचाय रखने के लिए तलवार उठाना पड़ता है और ऐसा योजना बनाकर नहीं, स्वतःस्फूर्त होता है।
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दूसरी बात, हिन्दुस्तान का राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी #अतीतजीवी और #भारत_व्याकुल है, साथ ही शुतुरमुर्गी भी।उसकी #मानसिक_गुलामी ने उसकी #रीढ़ की हड्डी समाप्त कर दी है।इसलिए वह बुद्धिविलासी, बुद्धिवंचक या बुद्धिविरोधी तो हो सकता है लेकिन उसके बुद्धिवीर होने और फिर बने रहने की संभावना बहुत ही क्षीण रहती है।
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जिस देश में 1000 बरसों तक आक्रांताओं के शासन का #इतिहास रहा हो वहाँ के लोगों ने अपनी #गुलामी_के_कारणों की पड़ताल करते हुए अब तक एक भी मुकम्मल किताब क्यों नहीं लिखी? चाहे वामपंथी हों या राष्ट्रवादी या मध्यमार्गी।
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आप जो तब्दीली देख रहे हैं, उसके पीछे मुख्य रूप से #मोबाइल/ #इंटरनेट/ #सोशल मीडिया है जिसने सदियों के #अपमान, बलात्कार और नरसंहार की #छुपी_कथा को सर्वसुलभ करा दिया है।इसलिए #हिन्दुओं का एक तबका #मुसलमान बनेगा, बनकर रहेगा।वह हिन्दू बने रहने के लिए मुसलमान यानी कट्टर बनेगा।इसी में भारत की गति है।
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अगले कुछ समय में #मोदी को बहुत #उदार नेता (जैसे आज आडवानी हैं) और संघ को उदार संगठन माना जाने लगेगा क्योंकि देश के अनेक हिस्सों में '#हिन्दुओं_के_मुसलमान' अपने लिए नए नेता और नए संगठन खड़े कर लेंगे।और यह भी #सनातन का ही हिस्सा होगा, नया अध्याय होगा जो '#शांति_के_लिए_युद्ध' के नाम से लिखा जाएगा और जिसके लेखक लोक बुद्धिवीर होंगे न कि शास्त्रीय बुद्धिविलासी-बुद्धिजीवी।यह तय है।यानी पहले से मौजूद गुलामी-जनित शाँति के लाभार्थियों के खिलाफ लोकशांति के योद्धाओं का बिगुल बजेगा जिसकी पदचाप सुन बुद्धिजीवी टाइप लोग हलकान हो रहे हैं।
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अंतिम बात।#शास्त्रार्थ और #युद्ध की तैयारी किसी भी गतिमान समाज में साथ-साथ चलते हैं , अलग-अलग नहीं।क्योंकि, 'बिनु भय होहीं न प्रीत'।
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इस युद्ध के नायकों को अपधे दुश्मनों से असली खतरा नहीं होगा।असली खतरा होगा गुलामी और कायरता को विजयमाल की तरह जप रहे बुद्धिजीवियों से जो सनातन का एकपक्षीय रूप पेश करेंगे।
लेकिन इन्हें कोई बताए कि सनातन को इस स्तर तक पहुँचने में 'वैदिक हिंसा हिंसा न भवति' और 'महाभारत' से गुजरना पड़ा।काश पिछले 1500 सालों में महाभारत-2 हो गया होता तो आज जैसी नौबत नहीं आती।खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद ।
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