Wednesday, December 21, 2016

निष्कर्ष निकालने के बाद काम लायक़ डाटा चुगनेवाले 'परमहंस' कौन?

निष्कर्ष निकालने के बाद काम लायक़ डाटा चुगनेवाले 'परमहंस' कौन?

¶ मुसलमानों द्वारा हज़ार सालों के क़त्लेआम और बलात्कार ने जितना नुक़सान इस देश को नहीं पहुँचाया उससे हज़ार गुना ज़्यादा नुक़सान दो सौ साल के अंग्रेज़ी शासन ने किया। और यह संभव हुआ हिन्दुस्तानियों में अपने देश, अपने ज्ञान, अपनी विरासत और अपने सर्वश्रेष्ठ के प्रति हीनभावना पैदा करके।¶

यह उस रिपोर्ट से नंगे सच की तरह उभर कर आता है जिसे लॉर्ड मैकॉले ने भारत की पारंपरिक शिक्षा पद्धति को प्रतिबंधित करने के पहले बर्तानवी संसद में (फरवरी 1833?) पेश किया था।

आज़ादी के बाद नेहरू परिवार की सदारत में यह आत्महीनता का प्रोजेक्ट लगातार चलता रहा। पिछले कुछ वर्षों से जो मोबाइल और इंटरनेट पर सवार युवा भारत में नवजागृति की लहर पैदा होना शुरू हुई है सो आत्महीनता की फैक्ट्री के मालिकों में भसड़ मच गई है। आत्महीनता का सबसे बड़ा दुश्मन है आत्मजागृति की कोख से पैदा हुआ आत्मगौरव।

पता करिये कि कौन-कौन आत्मगौरव में शर्म महसूस करता है, उसकी लिस्ट बनाइये और इस बात को वेरीफाई करिये कि ख़ुद और मुल्क़ पर शर्म करनेवालों में नेहरुवादियों और वामपंथियों का कितना प्रतिशत है।

हो सकता है मैं गलत होऊं, लेकिन यह बात तो आप डाटा संग्रह के बाद ही कह पाएँगे। सेकुलर-लिबरल-वामी बुद्धिविलासी इसे इग्नोर करें क्योंकि वे निष्कर्ष निकालने के बाद काम लायक़ डाटा चुगनेवाले 'परमहंस' हैं।
3.11.16

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