Tuesday, December 20, 2016

ज्यादातर मुसलमान सिर्फ मुसलमान होते हैं

ज्यादातर मुसलमान सिर्फ मुसलमान होते हैं, उदार या कट्टर नहीं। बस शिक्षा-दीक्षा , संस्कृति और दुनियाबी उद्देश्यों में अंतर के कारण बाहरी पैकेजिंग भिन्न-भिन्न होती है जिसका उनकी समाजी सोच पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता।
ऐसा नहीं होता तो:
* पाकिस्तान नहीं बनता ,
* कश्मीर में हिंदुओं का जातिनाश नहीं होता,
* प. बंगाल कल का कश्मीर बनने की राह पर नहीं होता,
* याकूब मेमन की शवयात्रा में हज़ारों मुसलमान नहीं होते,
* कैराना से हिन्दू भागने को मजबूर नहीं होते,
* बिन क़ासिम-ग़ोरी-ग़ज़नी-अब्दाली-औरंगज़ेब हीरो और कबीरदास-बाबा बुल्लेशाह-दारा शिकोह-अब्दुल कलाम ज़ीरो नहीं होते,
* ख़ुसरो जैसे महान सूफ़ी शायर को भी काफ़िरों से चिढ़ नहीं होती,
* चिश्ती जैसे औलिया ने अजमेर पर हमले के लिए ग़ोरी को पृथ्वीराज के किले का नक्शा समेत खुफिया जानकारी न दी होती और न ही हजारों हिंदुओं को छल-बल से मुसलमान बनवाया होता,
* अयोध्या-मथुरा-काशी के मंदिरों में मस्जिदें नहीं होतीं,
* अफ़ज़ल गुरु-बुरहान वानी शहीद नहीं कहलाते,
* शाहबानो केस में औरतों के हक़ के खिलाफ लाखों मुसलमान सड़क पर नहीं उतरते,
* आरिफ़ मो. ख़ान राजनीति में अछूत और आज़म-बुखारी-ओवैसी दुलारे नहीं होते,
* गोधरा नरसंहार सेकुलर व गुजरात दंगे कम्युनल नहीं होते,
* आतंक बेमजहब और योग बाधर्म नहीं होता,
* सज़ा के पहले दहशतगर्द महज भटके हुये मुसलमान पर सज़ा पाते ही शहीद नहीं होते,
* लगभग हर दहशतगर्द मुसलमान नहीं होता
और
* दुनियाभर में इस्लाम आतंकवाद का पर्याय नहीं होता।
20.12

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