Thursday, December 8, 2016

जेएनयू: मानसिक ग़ुलामी की फैक्टरी

जेएनयू: मानसिक ग़ुलामी की फैक्टरी

जेएनयू ने अक्सर कायर और मानसिक ग़ुलाम बुद्धिजीवी @ बुद्धिविलासी या बुद्धिवंचक या बुद्धिपिशाच पैदा किये हैं इसका एक प्रमाण यह भी है कि देशतोड़कों को मजबूत करती पोस्ट के समर्थन में टिप्पणी करते वक़्त वे वैसे ही ख़ुश होते हैं जैसे किसान अपने लहलहाते खेत देखकर।
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उनकी पहली विशेषज्ञता आयातित विचारधाराओं की बिना अक़्ल के नक़ल में है और दूसरी देसी वैचारिकी के अन्धविरोध में हैं। ...
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तीसरी विशेषज्ञता है शोध के छद्मावरण में पहले (वर्गहित और पार्टीहित के मद्देनज़र) निष्कर्ष लेना और फिर तदनुसार आँकड़े इकट्ठे करना। यह एक तरह की गलथेथरी है जब वाजिब आंकड़ों और तथ्यों के बिना आप अपनी बातों पर अड़े रहते हैं।
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चौथी विशेषज्ञता है तार्किक और तथ्यपूर्ण पोस्ट को पढ़ते हुए पतली गली से निकल जाना यानी न लाईक करना न उसकी आलोचना करना।
पाँचवी विशेषज्ञता है देसीदृष्टि सम्पन्न जेएनयू वालों को 'भक्त' कहते हुए उनके सवालों के जवाब देने से कन्नी काटना। इसे सेकुलर कायरता भी कह सकते हैं।

अब मान लीजिये कि उपरोक्त सारी बातें बेबुनियाद हैं। फिर अपनी बात साबित करने के लिये:
देश-समाज की किसी चुनौती पर कोई मौलिक उद्भावना का नाम बताइये जो जेएनयू के किसी समाजविज्ञानी ने दी हो;
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कोई शोधपत्रिका जो वहाँ से प्रकाशित होती हो और जो भारतीय दृष्टि के लिये जानी जाती हो;
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पुरस्कृत प्रोफेसरों में उनके नाम बताइये जिनका नेहरू-वंश की अकुंठ प्रशंसा, भारत-विरोध और आत्म-घृणा के अलावा कोई और योगदान हो।

#गुलामघर_जेएनयू #जेएनयू #मानसिक_गुलामी


24.11.16

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