धर्मांतरण और 'घरवापसी' (सेकुलरदास की व्यथा-कथा: भाग-1)
आज बंदानवाज़ सेकुलर दास का फोन आया-जल्दी मिलो।कभी इस तरह से उन्होंने सीधे फोन नहीं किया था।उनका असिस्टेंट करता था और कुछ इंतज़ार के बाद ही वे लाइन पर आते थे।मैं तेज़ कदमों से नज़र बचाते उनके सामने हाज़िर हुआ। वे क्रोध और चिंता से पस्त हुए जा रहे थे।मुद्दा था-आगरा में धर्मांतरण से मुसलमान हुए लोगों का वापस हिंदू होना।
बोले,'तुम कहते हो धर्मांतरण अहिंदू है, फिर यह सब क्यों!?
मैं पसोपेश में था क्या कहूँ? यहाँ विचारधारा से ज्यादा सेकुलरदास की हालत महत्वपूर्ण थी।सो मैंने कहा: कोई नहीं, हिन्दुओं के जातपांत से पाला पड़ेगा तो फिर से मुसलमान बन जाएँगे। इस पर वे बिफर गए-अरे मुसलमानों में भी जातपांत कम नहीं।मुझे नहीं लगता वे वापस मुसलमान बनेंगे।
अब क्या किया जाए।
सेकुलरदास बड़े निरीह से अपने हाथों में सर लिए मेरे सामने थे और मैं कुछ भी कहने के लिए बेबस।
तभी एक आइडिया आया-चाचू, अगले चुनाव में काँग्रेस की वापसी होगी।फिर ये लोग दुबारा इस्लाम कबूल कर लेंगे।
यह सुनते ही उनकी आँखें छलछला गईं। कहने लगे-
देखो मेरा मन रखने के लिए तुम झूठ -पर -झूठ बोले जा रहे हो।काँग्रेस वह प्लेन है जिसका पायलट पप्पू है और मोद्याँधी के कारण राजनीतिक मौसम एकदम प्रतिकूल है।ये उड़ना दूर, टेकआॅफ भी नहीं कर पाएगा।
मैं भी कहाँ हिम्मत हारनेवाला था।सो अंतिम अस्त्र चलाने का लोभ रोक नहीं पाया-'आप' धीरे-धीरे काँग्रेस की जगह ले लेगी। देरसबेर सेकुलर- वामपंथी भी यहाँ ठेहा लगाने आ जाएँगे।हो सकता है दिल्ली में दोबारा उनकी सरकार भी बन जाए।आपको क्या परेशानी?
सेकुलरदास इस बार गंभीर हो गए।बोले-आप उस प्रेमी की तरह है जिसे प्रेमिका का इतना प्यार और विश्वास मिला कि वो नरभसिया गया और अकारण उसकी ऐसी तैसी पर उतर आया।जब होश आया तो प्रेमिका थी, उसका प्रेम भी था लेकिन विश्वास फाक्ता हो चुका था।
आपके कहने का मतलब? मैंने संजीदा होते हुए पूछा।बड़े सधे अंदाज में सेकुलरदास ने बोलना शुरू किया-भाई अव्वल तो 'आप' की सरकार बनने से रही। अगर बन भी गई तो इस बार आमोखास की सेवा में ऐसे डूबेगी कि सेकुलर-कम्युनल और हिन्दू-मुस्लिम के लिए किसी के पास फुर्सत न होगी।
'तब तो बड़ी अच्छी बात होगी', मैंने टोकते हुए जोड़ा।
वे फिर बोले -देखो, तुमलोग हमें क्या समझोगे। हमलोग सेकुलर-कम्युनल के रथ पर सवार हो नौकरी पाए।इस-उस पार्टी के लोगों के चक्कर लगा
सत्ता के करीब हो लिए।बिना किसी काम- धाम के अपना सिक्का जम गया।लेकिन इसी बीच इंटरनेट-मोबाइल-अन्ना-आप और मोदी ने आकर काम बिगाड़ दिया।ये सब काम करवाने वाले हैं और हमारी काम की आदत नहीं रही।
मैं मुँह बाए उनको सुन रहा था।
वे बिना रूके बोलते रहे-हम तो सेकुलर-कम्युनल और हिन्दू-मुस्लिम के सहारे रिटायर होने का सपना देख रहे थे। हमें क्या नहीं मालूम कि भारत या कोई भी देश अपने बहुमत की बदौलत अच्छा या बुरा बनता है।आज जो भी अच्छा है उसमें हिन्दुओं का रोल बड़ा है।कश्मीर तो मुसलमान बहुल है।क्या हाल हो गया वहाँ का? पाकिस्तान के अंदरूनी कलह का निर्यात केन्द्र बन कर रह गया है।
एकाएक उनका ध्यान घड़ी की ओर गया।रात के नौ बज रहे थे।बोले-आज मैं तुम्हें रूकने के लिए भी नहीं कह सकता।दोनों कामरेड यहां जिमने वाले हैं।कोई अमेरिका से कोन्यक की दो बोतलें लेते आया था।और हाँ, हो सके कभी कभार आ जाना। तुम्हारा झूठ तुम्हारे सचमुच के सार्वजनिक टंटे से कहीं सुकून देनेवाला है।
मैंने चुटकी ली-मुझे किसी ने यहां देख लिया तो? बंदानवाज़ सेकुलरदास इस बार अधरोष्ठों में मुस्कराये-अरे, कोई नहीं।मैं तो लेनिन की लाइन फाॅलो कर रहा था: एक कदम पीछे, दो कदम आगे।
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