मानवता और मानववाद बहुत ही संकुचित अवधारणाएँ हैं
मानवता और मानववाद बहुत ही संकुचित और लगभग 200 साल पुरानी अवधारणाएँ हैं । प्रकृति और अन्य जीव कहाँ गए? क्या इनके बिना मनुष्य संपूर्ण हो सकता है? मनुष्य-केन्द्रित सोच ने राष्ट्र-राज्य, सेकुलर-कम्युनल, दो विश्व-युद्ध और पर्यावरण-विनाशी योजनाएँ दीं।
इसके बरक्श भारतीय चिंतन समावेशी है और एलियट ने अपनी प्रसिद्ध कविता Wasteland का अंत उपनिषद् के शांति-मंत्र से किया है जिसमें प्रकृति, अन्य जीव-जन्तु और मनुष्य में तालमेल की बात की गई है।
लेकिन भारतीय आभिजात्य वर्ग के लिए यह सब वैसे ही है जैसे 'बंदर के हाथ में नारियल'। आप बड़े शौक से कह सकते हैं कि 'Pappu can't dance ...la'
इसके बरक्श भारतीय चिंतन समावेशी है और एलियट ने अपनी प्रसिद्ध कविता Wasteland का अंत उपनिषद् के शांति-मंत्र से किया है जिसमें प्रकृति, अन्य जीव-जन्तु और मनुष्य में तालमेल की बात की गई है।
लेकिन भारतीय आभिजात्य वर्ग के लिए यह सब वैसे ही है जैसे 'बंदर के हाथ में नारियल'। आप बड़े शौक से कह सकते हैं कि 'Pappu can't dance ...la'
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