Thursday, June 2, 2016

इस्लामी शासन पर विमर्श के दौरान कोई क्यों 72-हूरों वाली ज़न्नत बात को घुसेड़े?


श्री Dhirendra Pundir की फेसबुक वाल पर आज जनाब रहमानुल्ला ख़ान ने इस बात पर आपत्ति की कि सात सौ सालों के इस्लामी शासन पर विमर्श के दौरान कोई क्यों 72-हूरों वाली ज़न्नत बात को घुसेड़े?

काॅमनसेंस से देखें तो ख़ान साहेब की बात दमदार लगती है।लेकिन थोड़ा शोध करें और सेकुलर पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सोचे तो 72 हूरों वाली बात को चर्चा में लाना जरूरी लगता है।
आप पूछेंगे , सो कैसे भाया?
तो सुनिए।

देखिए साहेब, इस्लाम एक साफ्टवेयर है और मुसलमान हार्डवेयर (यह बात हर मजहब पर लागू होती)।इस साफ्टवेयर का अभिन्न हिस्सा हैं दारुलस्सलाम, दारुल हरब, जिहाद, काफ़िर, काफ़िर वाजिबुलक़त्ल, ग़ज़वा-ए- हिन्द, क़ब्र, क़यामत, ज़न्नत, हूर आदि और जिनका ग़ैरमुसलमानों से गहरा संबंध है।
आज भी इस्लाम के नाम पर मुसलमान जो भी(अच्छा-बुरा) कर रहे हैं उसका इस 1400 पूर्व के साफ्टवेयर से चोली दामन का संबंध है।इसीलिए किसी सज्जन (मैंने पढ़ा नहीं) 72-हूरी ज़न्नत का ज़िक्र किया होगा।
दो-तीन सवालः
1.इस्लाम में कितने सुधारवादी आंदोलन हुए? इन आंदोलनों का क्या हस्र हुआ?
2.पाकिस्तान सिर्फ एक देश है या सोच?
3. अगर सोच तो आज के भारत में क्या अनगिनत पाकिस्तान नहीं बसते ?
नोटः विशेष जानकारी के दिए देखें--
# Jihadist Threat to India@ Tufail Ahmad
# A God Who Hates@ Wafa Sultan
# The Illusion of Islamic State@ Tarek Fateh
# Allah is Dead: Islam is Not
a Religion@Rebecca
# Slavery, Terrorism and Islam@ Peter Heymond
# Questioning Islam@ Peter Townsend

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