Thursday, June 2, 2016

वे हारकर भी दिलों के बादशाह बन गए, हमलावर विजेता किताबों पर राज करने लगे...


वे हारकर भी दिलों के बादशाह बन गए,
हमलावर विजेता किताबों पर राज करने लगे...

अपने गाँव -मुहल्ले-शहर में जो आपने महाराणा प्रताप, रानी झाँसी, कुँवर सिंह, मंगल पांडेय, भगत सिंह, आजाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस की गाथाएँ सुनी हैं , उन गाथाओं के मर्म को सरकारी किताबों में क्यों नहीं पाते?
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सरकार किसकी है ? आपकी या काले अंग्रेज़ों की ?
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ये योद्धा तो मैदान की लड़ाई हार गए थे फिर भी हम उन्हीं से प्रेरणा क्यों लेते हैं, उन्हें
हरानेवालों से प्रेरणा क्यों नहीं लेते?
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लोग कहते हैं कि इन योद्धाओं ने लड़ाई के मैदान में दुश्मनों की विशाल सेनाओं से हारकर भी मन से हार नहीं मानी...
वे लोगों के दिलों के बादशाह बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए...
विजेताओं ने जमीन और किताबों पर अपना राज कायम किया...
जयचंदों को नवरत्न बनाया...
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भारत के दरी-कालीन उद्योग को बुलडोज करानेवाले...लाखों कारीगरों को बाल श्रम कानून की आड़ में कंगाल बनानेवाले
कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिला है...
हर फर्जीवारा का सहारा ले गरीबों को ईसाई बनाने के लिए सेवा की राजनीति करनेवाली मदर टेरेसा को मिला है...
गाँधी जी को नहीं मिला।
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+देश के अनपढ़ टाइप लोगों को दुनियाभर का सच आजकल कौन बता रहा है?
+पढ़ुआ-कलम घिस्सुआ के पेट पर कौन लात मार रहा है?
+सरकारी और परिवार-बद्ध स्थापित इतिहासकारों को भाँट कहकर कौन लुलुआ रहा है?
+जयचंदों की पोल कौन खोल रहा है?
+बुद्धिजीवियों को बुद्धिविलासी, मानसिक गुलाम और बुद्धिपिशाच कौन बता रहा है?

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इनका पता चले तो मेरा साष्टांग नमस्कार बोलियेगा और कहिएगा मैं उनका भक्त हो गया हूँ...कम्युनल हो गया हूँ...मेरे जैसे करोड़ों लोग आज भक्त और कम्युनल हो गए हैं...

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