Thursday, June 2, 2016

सेकुलर दोहरापन की निर्लज्ज अभिव्यक्ति कम हो रही है

पिछले एक साल से दो बातें मैंने महसूस की हैं:
पहली बात तो यह कि सेकुलर ब्रिगेड को अपने भारत-अज्ञान को लेकर जो गर्व था वह आजकल कभी खीस तो कभी हीनभावना रूपी मवाद की तरह बाहर आता है।
*
दूसरी बात यह कि सेकुलर दोहरापन की निर्लज्ज अभिव्यक्ति भी कम हो रही है:
जैसे दिल्ली दंगा को सेकुलर और गुजरात को कम्युनल या फिर अख़लाक़-हत्या को कम्युनल और जिशा की बलात्कार के बाद हत्या को व्यवहारतः सेकुलर मानना अब आसान नहीं रह गया है।
*
ऐसा हो क्यों रहा है?

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home