सिर्फ प्रार्थना नहीं , अधर्म के संहार की शक्ति के लिए प्रार्थना कहिए जनाब!
सिर्फ प्रार्थना नहीं , अधर्म के संहार की शक्ति के लिए प्रार्थना कहिए जनाब!
अक्सर लोग कहते हैं कि प्रार्थना में बड़ी ताकत होती है।सवाल है क्या कभी आँकड़ों से इस कथन को तौलने की कोशिश हुई है? भारत का अपना अनुभव क्या कहता है?
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सोमनाथ ध्वंस के समय भी बहुत प्रार्थना हुई थी।इसके पहले सिंध में हमले का जवाब प्रार्थना से दिया गया था जिसके बाद हमलावर तीस हजार औरतों को गुलाम बनाकर ले गया था ताकि इन्हें बाजार में सामान की तरह बेंचा जा सके।
आज के काँधार और उसके सटे इलाकों के ज्यादातर बौद्ध पेशेवर प्रार्थना-कार थे।महज कुछ दिनों में वे लोग या उनकी आस्था अल्लाह मियाँ के प्यारे बना दिए ग्ए ।
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जैसे प्रार्थना से हमलावर नहीं हारे वैसे ही महज प्रार्थना से देशविरोधी ताकतें भी नहीं खत्म होंगी।प्रार्थना का उद्देश्य अगर हमलावरों और गद्दारों से निबटने के लिए ताकत और आत्मबल बढ़ाना है तो प्रार्थना सफल होने के आसार बढ़ जाते हैं।
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हजार सालों की गुलामी और इस दौरान राणा प्रताप, रणजीत सिंह, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, भगत सिंह, नेताजी आदि इस बात की मिसालें हैं कि जमीनी हार भी भविष्य की जीत का आधार बन सकती है अगर प्रार्थना के केंद्र में अधर्म (अकर्तव्य) के खिलाफ संघर्ष के लिए शक्ति-प्राप्ति हो।
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आपके लिए प्रार्थना क्या है?
क्या अक्सर खुद को केंद्र में रखकर की गई प्रार्थना सच्ची हो सकती है?
मैं अपनी प्राथनाओं के केन्द्र में खुद को अक्सर नहीं रख पाता हूँ और न ही जबतब प्रार्थना कर पाता हूँ, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
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