महाराणा प्रताप बनाम अकबर रोड
महाराणा प्रताप बनाम अकबर रोड पर बहसः
ताल ठोक के @ज़ी न्यूज़ (18.05.2016)
चार सौ से ज्यादा योजनाओं, संस्थानों, उद्यानों, छात्रवृतियों आदि के नाम नेहरू जी या उनके वाले गाँधी परिवार के सदस्यों के नाम पर हैं।बाकी में महात्मा गाँधी ,सुभाष, अंबेडकर, पटेल, और हजारों साल की सभ्यता वाला पूरा हिन्दुस्तान है।
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इतनी बड़ी संख्या में नामों पर कब्जा उस व्यक्ति और उसके वंश का है जो गर्व से कहता था: मैं मन से यूरोपीय हूँ, संयोगवश भारतीय हूँ ।
मानसिक गुलामी का इससे अच्छा उदाहरण कुछ हो सकता है क्या?
अमर होने की लालसा और पुरस्कार लिप्सा का ऐसा शिकार था ये परिवार कि नेहरू जी और इंदिरा जी ने खुद को भारत रत्न दे दिए थे।
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इन्हें अकबर या औरंगजेब किसी के नाम से कोई लगाव नहीं है, बल्कि अपने खानदान की नाम-पट्टियों की समीक्षा का उन्हें खतरा साफ नजर आ रहा है।
नहीं तो दोबारा जज़िया लगाने वाले, मंदिर-भंजक तथा इस्लाम न कबूलने पर गुरू तेग बहादुर की हत्या करवाने वाले औरंगजेब और 21वीं सदी के राष्ट्र-शिरोमणि जननायक अब्दुल कलाम में कोई तुलना ही नहीं है।
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वैसे ही राष्ट्रीय भावना, वीरता और त्याग के मामले में महाराणा प्रताप के सामने कहीं अकबर टिकते नहीं। इसी तरह अकबर के सामने औरंगजेब बौना है।
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पता करिये आजादी की लड़ाई में लोगों को महाराणा, लक्ष्मीबाई और गुरु तेगबहादुर से प्रेरणा मिली थी या औरंगजेब तथा अकबर से।पूरे इस्लामी शासनकाल में शेरशाह बेजोड़ है लेकिन पता नहीं क्यों वह सेकुलरों को नहीं पचता।शेरशाह के शासन का लाभ अकबर ही नहीं पूरे मुगलिया खानदान को मिला।
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