Thursday, June 2, 2016

अकबर रोड, मानसिंह रोड तो जयचंद रोड क्यों नहीं?

अकबर रोड, मानसिंह रोड तो जयचंद रोड क्यों नहीं?
जिस देश की राजधानी में महाराणा प्रताप की जगह अकबर रोड और मान सिंह रोड हो, राणा सांगा की जगह बाबर रोड हो और संत कबीर की जगह सिकंदर लोदी रोड हो उस देश के डीएनए में ही मानसिक गुलामी है जिसका संकेत 1960 के दशक में नोबेल पुरस्कार विजेता स्पैनिश साहित्यकार और भारत में मैक्सिको के राजदूत आक्टेवियो पाज़ ने भी किया थाः भारत के आभिजात्य वर्ग जैसा नक्काल दुनियाभर में खोजे नहीं मिलेगा।
*
ज्यादातर लोग इसका दोष वामपंथियों को देते हैं।लेकिन चीन, रूस या वियतनाम के वामपंथी तो गहन राष्ट्रवादी होते हैं।
*
यह दिलचस्प है कि घोर राष्ट्रवादी चीनी-रूसी-वियतनामी वामपंथियों की नकल करनेवाले भारत के वामपंथी इतने आत्महीनता के शिकार क्यों हैं?
*
इसका संबंध कहीं-न-कहीं अंग्रेज़ी और मुसलमानी शासन से जरूर होगा।तभी तो बीबीसी को अभी भी भारत साँप-सँपेरों का देश लगता है और जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया और उसके वामपंथी प्रोफेसर उन लोगों के साथ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खड़े होते हैं जिनके नारे हैं
'भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह' ,
अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा हैं, तेरे क़ातिल जिंदा हैं', 'कश्मीर माँगे आज़ादी, केरल माँगे आज़ादी, बंगाल माँगे आजादी, हम लेके रहेंगे आजादी'।
*
जहाँ तक दिल्ली की सड़कों के नामकरण का मामला है, दिल्ली में भारत का उतना ही स्वागत है जितना हमलावरों, दुश्मनों या गद्दारों का।
कमी है तो--
पाकिस्तान रोड की ,
ब्रिटेन रोड की,
पुर्तगाल रोड की,
मुहम्मद गोरी रोड की,
ग़ज़नी रोड की,
नादिर शाह रोड की,
क़ासिम रोड की
चंगेज़ ख़ाँ रोड की
जयचंद रोड की...
...........

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home