अपराधियों को क्यों नायक मानने लगे हैं लोग?
अपराधियों को क्यों नायक मानने लगे हैं लोग?
अमेरिका-यूरोप में परिवार और रिश्ते पतनोन्मुख हैं लेकिन वहाँ की व्यवस्था जितनी समतामूलक और न्यायपूर्ण है, भारत में उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है।
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आज भारत में व्यवस्था के नाम पर सबसे ज्यादा कारगर है जाति-व्यवस्था; परिवार के लिए लोग कोई भी त्याग करने को तत्पर रहते हैं; और दूसरे की आस्था का अधिसंख्य जन सम्मान करते हैं।
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लेकिन बिना भेदभाव के व्यक्ति-निर्पेक्ष तथा गुण-सापेक्ष संस्थागत निर्णय लेनेवाले की भारत में खैर नहीं।निजि पहचान, जाति और क्षेत्र के फिट साँचे में ही संविधान को काम करना होगा।नहीं तो संस्थानों में पदस्थ लोगों का गिरोह संस्थागत निर्णय लेनेवाले व्यक्ति का जीवन दूभर कर देगा और इसमें न्यायपालिका-कार्यपालिका-विधायिका-मीडिया सब के सब मूलतः गिरोह के हितों के साथ खड़े नजर आते हैं।
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पिछले दो सालों में अपने वैचारिक -विरोधियों से अनौपचारिक बातचीत में यह बात सामने आई कि अधिकाँश लोग पिटे-पिटाये रास्ते पर चलने, कुछ भी नया नहीं करने और सच्ची बात नहीं करने में अपनी भलाई समझते हैं क्योंकि संकट के समय न्यायपालिका-कार्यपालिका -मीडिया किसी काम के साबित नहीं होते।सिर्फ निजी संबंध काम आते हैं, देश-प्रेम या संस्था-प्रेम नहीं।
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क्या कारण है कि 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' कहनेवालों के साथ पूरा मीडिया और राजनैतिक पार्टियाँ खड़ी हो जाति है, एक आतंकवादी महिला को एक मुख्यमंत्री अपने राज्य की बेटी घोषित कर देता है जबकि उसी राज्य में सत्ताधारी पार्टी के बाहुबली नेता के बारे में अप्रिय लेकिन सच्ची रिपोर्टिंग करनेवाले पत्रकार की दिनदहारे हत्या होने पर वही मुख्यमंत्री मौनी बाबा बन जाता है।
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इसीलिए काँग्रेस की तरह अन्य अनेक पार्टियाँ वंश, जाति और व्यक्ति-केन्द्रित हैं और ज्यादातर लोग इस पर सवाल उठाना भी आवश्यक नहीं समझते।
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भारत की सारी आधुनिक संस्थाएँ--न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, मीडिया--व्यक्ति, जाति और परिवार के बर्मूडा ट्रैंगल में ऐसे फँसी हैं कि वे सिर्फ कामचलाऊ संस्थाएँ रह गई हैं।हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन हम अपनी जाति के ही एक अपराधी को वोट देंगे क्योंकि हमारे संकट के समय न्यायपालिका-कार्यपालिका-मीडिया नहीं, बल्कि वही अपराधी काम आएगा!
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यह आकस्मिक नहीं है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की अनेकता में एकता को कोई एक आधुनिक चीज चरितार्थ करती है तो वह है अपराधियों को नायक का दर्जा। भगवान की तरह सर्वव्यापी और उससे भी ज्यादा प्रभावी अगर कोई है आज के भारत में तो वह है अपराधी।
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सवाल उठता है कि अपराधी कौन?
अपराधी वह जो संस्थाओं और नियमों की ऐसी-तैसी करे।
दूसरा यह कि कोई अपराधी क्यों बनता है?
उत्तर है कि सम्मानजनक जीवन जीने में सबसे ज्यादा मददगार है अपराध-कर्म।
तीसरे, ये संस्थाएँ क्या करती हैं?
ये कुछ नहीं करतीं, इनका काम है अपराधियों द्वारा किए काम पर बहादुरशाह जफर वाले अंदाज में स्वीकृति की मुहर लगा देना।
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