Thursday, June 2, 2016

काँग्रेस-मुक्त भारत या वंश-मुक्त काँग्रेस?

काँग्रेस-मुक्त भारत या वंश-मुक्त काँग्रेस?
आज (19.5.2016) ज़ी न्यूज़ पर श्री Sumant Bhattacharya, काँग्रेस के श्री राजीव त्यागी, भाजपा के श्री प्रेम शुक्ला और ज़ी एंकर सचिन के साथ मेरा पक्ष।)
पिछले दो बरसों से टीवी-बहसों के दौरान अक्सर लोगों को मोदी जी के 'काँग्रेस मुक्त भारत' नारे के समर्थन और विरोध को देखता-सुनता-गुनता आया हूँ।
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आज इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मोदी जी , भाजपा या किसी भी काँग्रेस-विरोधी के मुँह से इस नारे का निकलना स्वाभाविक हो सकता है लेकिन क्या एक सजग नागरिक के नाते भी इसका समर्थन किया जा सकता है?
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देश की सबसे पुरानी और व्यापक राष्ट्रीय पार्टी है काँग्रेस...
देश के कोने-कोने में उपस्थित है काँग्रेस...
लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे ज्यादा अलोकताँत्रिक पार्टी भी है काँग्रेस...
क्योंकि नेहरू जी के गाँधी वंश का फैमिली बिजनेस हो गई है काँग्रेस...जिसमें पिछले दो दशकों से इंतज़ार है इस बात का कि पार्टी और देश की कमान संभालने लायक हो जाएँ काँग्रेस के 'युवराज'... सुनते हैं एक पीआर कंपनी को ठेका दिया गया है कि विष्णु शर्मा की तरह वो 'पंचतंत्र' की कहानियाँ सुना-सुनाकर उन्हें जल्दी ही चिर-युवराज से 'राजा' होने लायक बना दे...यानी ऐसा कोई ऐसा जतन करे कि पचास बरस का लल्ला प्रधानमंत्री का बल्ला पकड़ ले।
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सुयोग्य दरबारियों ने प्लान-बी भी रेडी रखा है।अगर युवराज रास्ते पर नहीं आए और महात्मा गाँधी की काँग्रेस को भंग करने की अंतिम इच्छा को पूरी करने की जिद पर अड़े रहे तो क्यों न राजकुमारी के हाथ में वंश की कमान दे दी जाए? हालाँकि यहाँ थोड़ा 'ब्लू ब्लड' में बाद में मिलावट का ख़तरा है...यानी पंडित जवाहरलाल नेहरू से इंदिरा नेहरू गाँधी...फिर गाँधी से वाड्रा...
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ऐसे में काँग्रेसियों से प्रार्थना है कि वे अनंत इंतजार त्याग क्यों न नेहरू वाले गाँधी वंश से काँग्रेस को मुक्त करके अपनी राष्ट्रीय पार्टी को सचमुच राष्ट्रीय बना दें ?
इसके अनेक लाभ हैं:
1. पहला, शआज देश की सिर्फ सात फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करनेवाली पार्टी का सत्ता से वनवास खत्म होगा।
2. दूसरे, देश को एक मजबूत विपक्ष मिलेगा।
3. तीसरे, पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र आने से देश का लोकतंत्र भी मजबूत होगा।
4. चौथे, जहाँ-जहाँ काँग्रेस का फुटप्रिंट मजबूत होगा वहाँ-वहाँ भाजपा को भी एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अपने पाँव जमाने में सुविधा होगी क्योंकि सिर्फ क्षेत्रीय राजनैतिक पिच पर बैटिंग करने से आसान है कि पहले से काँग्रेस द्वारा तैयार राष्ट्रीय पिच पर बैटिंग की जाए।
अब सवाल है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन बाँधे?
कायदे से पूरे देश के नागरिकों को इस भगीरथ-प्रयास का हिस्सा बनना चाहिए।आखिर गले पर बैठी मक्खी को भगाने के लिए पूरी गर्दन ही साफ कर देना कोई बुद्धिमानी तो है नहीं!
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सीधा सा तर्क देना है:
# मैडम जी कुछ लोगों की गलती से यह देश लोकतांत्रिक गणराज्य है तो वंशवृक्ष भले रह जाए वंश की सत्ता का टिकना मुश्किल है...
# फिर आजतक किसी भी वंश का शासन शाश्वत-सनातन नहीं रह पाया तो क्यों न इसे ईश्वरीय लीला मानकर स्वीकार कर लिया जाए?

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