लोग अब नेहरू परिवार से जुड़ी हर चीज पर संदेह करने लगे हैं
जवाहरलाल नेहरू इतने खूँखार टाइप के 'आधुनिक' थे कि गर्व से कहते थे:'मैं सिर्फ तन से भारतीय हूँ, मन से तो यूरोपीय हूँ'।
# फिर नाम के पहले 'पंडित' क्यों लगाते थे?
# फिर मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को त्रिवेणी में क्यों प्रवाहित किया गया?
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क्या बनारस, प्रयाग, पुरी, हरिद्वार और गया के पंडों से छानबीन कर इस परिवार के वंशवृक्ष की पुष्टि नहीं हो सकती?
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नेहरू ने लिखा है कि उनके दादा गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे और 1857 के गदर के बाद आगरा और फैजाबाद होते हुए इलाहाबाद में बस गए।इधर किसी हिन्दू के इस दौरान दिल्ली के कोतवाल होने की पुष्टि नहीं हो पा रही।
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1945 में तैवान हुई कथित विमान दुर्घटना के बाद नेताजी जी के गायब होने, उनकी मृत्यु को लेकर दिए नेहरू के बयान तथा उनके परिवार पर अगले तीन दशकों से भी ज्यादा तक नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा जासूसी करवाने की पुष्टि होने के बाद लोग अब नेहरू परिवार से जुड़ी हर चीज पर संदेह करने लगे हैं।
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गौरतलब है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी के इशारे पर रोमिला-हबीब गिरोह के अगुआ और जेएनयू के प्रोफेसर सर्वपल्ली गोपाल ने लाल किला परिसर में नेहरू खानदान के भारत में योगदान पर टाइम कैप्सुल गड़वाये थे ताकि भविष्य में जब कभी खुदाई हो तो नेहरू परिवार का नाम मौर्य, गुप्त या मुगल वंश की तरह लिया जाए तथा पंडित नेहरू को चन्द्रगुप्त, अशोक, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य और पृथ्वीराज चौहान का दर्जा मिले।
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इन्हीं फर्जीवारों के संदर्भ में नेहरू जी के वंशवृक्ष पर सवाल उठाये जा रहे हैं।नेहरू मूलतः हिन्दू थे या मुसलमान यह महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है कि वे जो भी थे उसके बारे में पक्की जानकारी रखने का हक हमसब को है।
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जिस देश में आठ सौ साल तक इस्लामी शासन रहा हो वहाँ का पहला प्रधानमंत्री अगर हिन्दू नामधारी मुसलमान हो तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात हो गई? फिर इसमें बुरा क्या है?
वैसे भी हमारे संविधान में मुसलमानों को व्यवहारतः हिन्दुओं से ज्यादा अधिकार हैं (तभी तो गोधरा नरसंहार सेकुलर है और गुजरात दंगे कम्युनल)।
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