अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि पर बहस से क्यों कतराते हैं बुद्धिजीवी?
शहीद योद्धा बंदा बहादुर बैरागी के बहाने: अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि पर बहस से
क्यों कतराते हैं बुद्धिजीवी?
गुरू गोविंद सिंह के दक्कन-प्रयाण के बाद
शहीद बंदा बैरागी ने विश्वास-घात के बावजूद मुगलों से अंतिम दम तक लोहा लिया और उनके छक्के छुड़ा दिये।आजकल उनको लेकर बहस चली है कि वे हिन्दू थे या सिख।लेकिन इसमें किसी को संदेह नहीं कि उन्होंने गुरू गोविंद सिंह को अपना गुरू माना था।क्या इसके बाद कोई और प्रमाण चाहिए सिख होने का?
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यह भी सच है कि हिन्दू लोग ही सिख बनते थे।कश्मीरी हिन्दुओं के लिए ही गुरू तेग बहादुर की शहादत हुई थी।उसी परंपरा का दशम् गुरू और बंदा बैरागी ने निर्वाह किया।
कालांतर में उन्हीं सिखों ने 1857 में अंग्रेज़ों का साथ दिया था। 1857 में यही हाल मराठों, जाटों और राजपूतताने का था। फिर इनके नाम पर अंग्रेज़ों ने अलग-अलग रेजिमेंट बनाई थी।
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अंग्रेज़ लोग भारत के लड़ाकू समुदायों की सेना बनाकर और उनमें फूट डालकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने भारत को डोमिनियन स्टेटस भी नहीं दिया था जो अनेक उपनिवेशों को प्राप्त था।
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यहाँ यह बात समझने की है कि किसी भी समुदाय/समाज/देश की दृष्टि हमेशा सही नहीं हो सकती।इसीलिए जो सिख और मराठे आमतौर पर मुगलों से लड़े वे अंग्रेज़ी राज के वफादार सिपाही हो गए।
राजपूताने का बड़ा हिस्सा मुगलों और अंग्रेज़ों दोनों के साथ था पर अंग्रेज़ों के सीधे नियंत्रण में नहीं जिस वह कारण खुद पर बहुत गर्व भी करता था।
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जिस सवाल पर सबसे ज्यादा विमर्श की दरकार है वह है हजार सालों तक अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि रखनेवालों की अनुपस्थिति।
महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह, रणजीत सिंह आदि में आंशिक रूप से इस रणनीतिक दृष्टि के दर्शन जरूर होते हैं।
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इस मोर्चे पर योद्धाओं से ज्यादा जिम्मेदारी बौद्धिकों की थी।कौन थे वे? दसवीं से 19 वीं सदी के अंत के पहले आदि शंकराचार्य जैसा अखिल भारतीय दृष्टि रखनेवाला कोई नाम मिले तो बताइए।
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उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं की शुरुआत में विवेकानंद, दादाभाई नौरोजी, अरविंद, तिलक, गाँधी, बाघा जतिन, लाला हरदयाल, रास बिहारी बोस, नेताजी आदि उस अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि की कमी को पूरी करते हैं।
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इसमें गाँधी और सुभाषचंद्र बोस वैचारिक मतभेदों के बावजूद अपनी रणनीतिक दृष्टियों में एक-दूसरे के पूरक होने के कारण सबसे ज्यादा कारगर और बेजोड़ हैं।गाँधी ने जनमानस से अंग्रेज़ों का डर भगाया तो नेताजी और रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज खड़ी कर अंग्रेज़ों के मन में यह डर भर दिया कि अब वे हिन्दुस्तानी फौज की मदद से हिन्दुस्तान पर राज नहीं कर पाएँगे।गाँधीजी और नेताजी की अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टियों ने जाति-मजहब-धन आधारित विभाजन पर अंग्रेज़ों के अतिविश्वास को डगमगा दिया था।
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इस अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि को पंक्चर करने के लिए अंग्रेज़ों ने नेहरू, इकबाल, जिन्ना, अंबेडकर और एम एन राय जैसों को आगे बढ़ाया जिनमें सबसे कम इस्तेमाल हुए अंबेडकर क्योंकि उनका फोकस वंचितों (अनुसूचित जातियाँ) पर था और सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुए नेहरू क्योंकि उनका फोकस कुर्सी पर था।
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इकबाल और जिन्ना इसलिए इस्तेमाल नहीं हुए क्योंकि कुरान-हदीस-शरीया के मुताबिक वे अलग इस्लामी देश पाकिस्तान बनाने में सफल हुए जहाँ काफ़िरों का नहीं, मुसलमानों का शासन कायम हुआ।आज पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी 22 प्रतिशत से गिरकर 1.5 प्रतिशत रह गई।
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भारत में रह गए नेहरू, एम एन राय और अंबेडकर।आज के भारत की रणनीतिक समस्याओं की जड़ में सबसे ज्यादा नेहरू और राय (कम्युनिस्ट) की विरासत है जबकि सबसे ज्यादा समस्या खड़ी करने की क्षमता अंबेडकर में थी और जिस कारण ही वे अंग्रेज़ों की आँखों के तारे बन गए थे।
ऐसा क्यों नहीं हुआ?
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अंबेडकर पश्चिमी चिंतन और ईसाई मिशनरियों द्वारा शास्त्रों के भ्रष्ट अनुवादों से प्रभावित होने के बावजूद आत्मकेंद्रित नहीं थे।दूसरे उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था।
कानून और अर्थशास्त्र में क्रमशः कोलंबिया और लंदन विश्वविद्यालय से पी.एचडी के बावजूद उन्होंने जो छुआछूत का दंश झेला था उसका भी उनके चिंतन पर पूरा असर था।आखिर गाँधीजी ने भी अछूतोद्धार आंदोलन चलाया ही था जो सामाजिक विषमता से आजादी की लड़ाई का अभिन्न अंग था जिसके बिना स्वतंत्रता अधूरी होती।
इस अर्थ में अंबेडकर भारतीय नवजागरण के अग्रदूतों राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद, इश्वरचंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फूले आदि की परंपरा की अगली कड़ी थे।
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उनकी अखिल भारतीय रणनीतिक दृष्टि का खुलासा 1940 में छपी पुस्तक Thoughts on Pakistan में होता है जिसमें वे विभाजन का विरोध करते हैं और साथ ही यह भी कहते हैं कि अगर विभाजन तय है तो हिन्दू-मुसलमान आबादियों की पूर्ण अदलाबदली होनी चाहिए।इस मोर्चे पर वे सर्वाधिक व्यावहारिक थे , इसके प्रमाण हैं कश्मीर में धारा 370(नेहरू जी), शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुसलमानों द्वारा विरोध कर संसद से निरस्त करवाना(नेहरू जी के नाती राजीव गाँधी) और मुस्लिम पर्सॅनल लाॅ बोर्ड का गठन(नेहरू जी की बेटी इंदिरा गाँधी)।
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दूसरी तरफ है एम एन राय की विरासत:
जो हर भारतीय चीज को हेय समझती है ;
जिसने पाकिस्तान निर्माण के लिए कामरेडों को झोंक दिया;
जिसने चीनी हमले का स्वागत किया;
जिसने अनेकानेक अंबेडकरवादियों को इतना गुमराह कर दिया है कि वे अन्याय-विरोध तथा देश-विरोध में अंतर करना भूल से गए हैं;
और जो कम्युनिस्ट विरासत भारत-विरोधी जेहाद-समर्थकों के साथ मिलकर जेएनयू में नारे लगवाती है---
भारत तेरे टुकड़े होंगे,
इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह!
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