Saturday, December 24, 2016

एक लड़ाई जिसे 1200 सालों से देसी व्याकरण का इंतज़ार है

बौद्धिक वर्ग की मानसिक ग़ुलामी का डीएनए टेस्ट

असली लड़ाई मन की थी और है... ये वो लड़ाई है जिसे 1200 सालों से देसी व्याकरण का इंतज़ार है
महान संत कबीर और योद्धा-संत गुरुगोविंद सिंह में इस्लामी हिंसा और कट्टरता को टक्कर देने का सऊर था।

सिखों में किताब को ही अंतिम गुरु मानना और सामरिक चुनौती के मद्देनजर पंथ को ढाल लेना आकस्मिक नहीं था। जो नागा लगभग समाज-बहिष्कृत रहे उन्हें सिख पंथ के तर्ज़ पर समाज का जरूरी और नियमित हिस्सा क्यों नहीं बनाया जा सका।

बुद्ध की अहिंसा को पटखनी देने के चक्कर में 'धर्मो रक्षति रक्षितः' वाला वैदिक ब्राह्मण 'अहिंसा परमो धर्म: ' के अपने ही चक्रव्यूह में मकड़े की तरह फँस गया और फँसा गया।
जबतक वर्णव्यवस्था और वांछित हिंसा को ब्राह्मणों ने नहीं छोड़ा तबतक वे समाज के अगुवा रहे। नक़ल में मारे गए गुलफ़ाम।

10 करोड़ से ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतारने वाले स्टालिन-लेनिन-माओ-पोल पॉट -चे गवारा-फिदेल कास्त्रो पैग़म्बर से कम नहीं हैं;
दीन के केंद्र में हिंसा को रखने वाले मुहम्मद इस धरती के अंतिम पैग़म्बर हैं;
ईसाई -मुसलमान बनाने के लिए सीधे या छिपाके  खूब हिंसा करने-करानेवाले संत और सूफ़ी हैं;
जबकि आत्मरक्षा में हथियार उठानेवाले प्रताप-शिवाजी-गुरुगोविंद सिंह और नागा साधू ठग-लुटेरे हो गए!

असली लड़ाई तो मन की थी और है। एक लड़ाई जिसे 1200 सालों से देसी व्याकरण का इंतज़ार है।
25।8।16

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