Friday, December 23, 2016

जेएनयू की देशतोड़क छवि को बदला कैसे जाए?

जेएनयू की देशतोड़क छवि को बदला कैसे जाए?
कौन करेगा और क्यों?
इससे किसको डायरेक्ट फ़ायदा होगा?

जेएनयू के छात्र-छात्राओं को लोग देशतोड़क मानने लगे हैं। ट्रेन-बस में लोग संदेह करने लगे हैं, उनके साथ मारपीट की भी खबरें हैं।वहाँ से पास आउट लोगों को मकान किराये पर मिलने में दिक्कत हो रही है। नौकरी के लिए इंटरव्यू में लोग उनसे उल्टे-सीधे सवाल पूछते हैं और अंत में नौकरी भी नहीं देते।


जेएनयू की देशतोड़क छवि का नुकसान सिर्फ़ वहाँ के वामपंथी लोगों को नहीं हो रहा क्योंकि बाहरवालों के लिए तो वहाँ का हर व्यक्ति वामपंथी ही है, देशतोड़क ही है। लेकिन क्या यह सच है?

मुश्किल से 10-15 % लोग वामपंथी होंगे , और वह भी समाजविज्ञान और साहित्य-भाषा विभागों में। विज्ञान विभागों के तो ज्यादातर लोग जाने-अनजाने राष्ट्रवादी सोचवाले हैं ।ऐसा इसलिये कि मानसिक ग़ुलामी का परचम लहरानेवाले समाजविज्ञान और भाषा-साहित्य विभागों के शिक्षकों और उनकी किताबों से उनका लंबा साबका नहीं पड़ता और वे हर फ़ैसले को विचारधारा से ज़्यादा तथ्यों के सन्दर्भ में तौलने के आदि हो जाते हैं। फ़िर अन्य सामान्य लोगों की तरह कॉमन सेंस का इस्तेमाल करते हैं और देशप्रेम उन्हें शर्म नहीं गर्व का विषय लगने लगता है।

तो असली चुनौती यह है कि जेएनयू की जो देशतोड़क छवि बनी है उसको कैसे बदला जाए। वैसे तो यह दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा होना चाहिए लेकिन छात्रसंघ चुनाव का अगर सही इस्तेमाल हो तो जेएनयू की छवि को हुए नुकसान की बहुत हदतक भरपाई हो सकती है।

यानी अगर छात्रसंघ चुनाव में वामपंथी संगठनों को करारी शिकस्त मिले तो पूरे देश में यह सन्देश जाएगा कि जेएनयू के ज्यादातर पास आउट न पहले देशतोड़क रहे न अब हैं। ये तो कुछ वामी शिक्षक हैं जो उनका गलत इस्तेमाल करते रहे हैं। और सही भी यही है कि भोले-भाले छात्र-छात्राओं को शिक्षक जैसे चाहते अपने इशारों पर नचाते हैं।
2।9।16

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