Friday, December 23, 2016

भारतीय नवजागरण-सीजन 2: आहिस्ता, आहिस्ता पर पक्का

भारतीय नवजागरण-सीजन 2: आहिस्ता, आहिस्ता पर पक्का

भारत के दिल की देहरी पर एक नवजागरण दस्तक दे रहा है...आहिस्ता, आहिस्ता पर पक्के तौर पर ।

अगर आप खबरची हैं तो आपने इसके दर्शन कर लिए होंगे मगर क्या अखबारों और खबरिया चैनलों की नज़र से?

नहीं , क्योंकि वहाँ तो तथ्यों की रेलमपेल है और सत्य के लिए किसी के पास टाइम है नहीं...

तो फिर आपने कैसे किया सत्य का साक्षात्कार?

पहला, मैं खबर लिखता हूँ, पढ़ता या देखता नहीं । दूसरा, अपने दोस्तों से संवाद बनाए रखता हूँ फेसबुक, मेल और ट्वीटर पर।तीसरा, किसी भी ज्यादा पढ़े-लिखे फारेन रिटर्न से बौद्धिक दूरी बनाए रखता हूँ ।

कमाल के आदमी हो यार!

कमाल ही तो हो रहा है...किताबों के चौखटे को लाँघ भारत घूमने निकल पड़ा है- नगर-नगर, डगर-डगर, चौक-चौराहा, गाँव-देहात, खेत-खलिहान,बाग-बगीचे, ताल-तलैया, नदी-नाले-पहाड़, मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे-गिरिजाघर-मठ, धरती-आसमान, खुदा-भगवान, हिन्दू-मुसलमान, सिख-ईसाई-पारसी-जैन-बौद्ध-कबीरपंथी... कुछ नहीं बचा।सबकी अपनी-अपनी जुबान पर राग है एक ही।

कौन सा राग है भाई?

देशराग...जिसे भक्त संतों ने गाया, जिसे आजादी के दिवानों ने गाया, जिसे मजदूर-किसानों ने गाया...
यानी, बोल अनेक, पर राग है एक?

हाँ जी । बोल अनेक पर राग है एक ।

पर ये सब हुआ कैसे?

बाबू, अभी हुआ कहाँ? बस शुरू हुआ है। हाँ, इसकी सवारी है मोबाइल, इंटरनेट और भारत की सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ।

इससे क्या होगा?

होगा नहीं, शुरू हो चुका है--नवजागरण । भारत बोल रहा है, हिन्दुस्तां बोल रहा है, इसकी संतानें एक-दूसरे से बिना बिचौलिये की मदद के गुफ्तगू कर रहीं हैं...आहिस्ता, आहिस्ता पर पक्के बतौर पर ।
7।9।16

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