Friday, December 23, 2016

1991 में कितनों को मालूम था कि USSR ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा?

1991 में कितने लोगों को मालूम था कि USSR ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा?

कुछ लोग कह रहे हैं कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव परिणाम से साफ़ हो जाएगा कि यह विश्वविद्यालय देशतोड़कों का अड्डा है या नहीं। परन्तु ऐसा कहना सिर्फ़ एक राजनीतिक तर्क है, रणनीतिक नहीं।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव का क्या परिणाम होता है। जेएनयू की वर्तमान स्थिति जो है वो है। जयचंद और मीरज़ाफ़र को भी किसी ने या उसके विवेक ने आगाह ज़रूर किया होगा। उन्होंने अपनी प्रचण्ड आत्महंता मूर्खता के आगे किसी की कुछ न सुनी और परिणाम भारत आजतक भुगत रहा है।

गाँठ बाँध लीजिये, अगले दस सालों में भारत के शीर्ष दस विश्वविद्यालयों में जेएनयू का शायद नाम भी ना हो। नाम होगा तो विज्ञान विभागों का जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग का दुनिया के शीर्ष विभागों में नाम था लेकिन विश्वविद्यालय का टॉप 225 में भी नहीं।

इसलिये सवाल यह है ही नहीं कि आप सही कि मैं, सवाल है कि हमारी (जेएनयू की) असल स्थिति क्या है।

1991 में कितने लोगों को मालूम था कि USSR ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा?

  • 4।9।16

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