Thursday, December 22, 2016

सेकुलर कथाकार प्रोफेसर Asghar Wajahat की पोस्ट

सेकुलर कथाकार प्रोफेसर  Asghar Wajahat की पोस्ट:

कुछ फ़ेसबुकिया मित्र, जो मेरे नाम के कारण मुझे वैसा ही मुसलमान मानते हैं जैसा वो चाहते हैं,यह पूछ रहे हैं कि मैंने 17 शहीद सैनिकों को शद्धांजलि पेश क्यों नहीं की।उनका शायद यह मानना होगा कि उनके अनुसार मुसलमान होने के नाते मैं शहीद सैनिकों को  शद्धांजलि नहीं पेश कर सकता या चाहता।पहले तो यह सोचना ग़लत है।मैं शहीद सैनिकों को पूरी आस्था के साथ शद्धांजलि पेश करता हूँ ।और इसके साथ साथ उन फ़ेसबुकिया मित्रों से  यह भी पूछना चाहता हूँ कि क्या मैं कश्मीर में शहीद हुए सैनिकों के साथ साथ उन भारतीय नागरिकों को भी शद्धांजलि पेश कर सकता हूँ जिन्होंने पिछले महीनों कश्मीर में अपनी जानें गवाँई है?

मेरा जवाब:
आप बेशक उन नागरिकों को भी श्रद्धांजलि दीजिये जिन्होंने अपनी जानें गवाईं हैं। सिर्फ़ यह ध्यान रहे कि आतंकवादियों को कवर देने वाले और सेना तथा आतंकवादियों के बीच कूदकर सेना पर बम, ग्रेनेड और पत्थर फेंकने वाले शरीया के हिसाब से नागरिक भले होंगे , वस्तुतः वे आतंकवादियों के एक्सटेंशन हैं क्योंकि कश्मीर में आज़ादी की आड़ में असली लड़ाई निज़ामे मुस्तफ़ा के लिए है जिसका वैचारिक आधार है:
जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह
क़त्ताल फ़ी सबीलिल्लाह
काफ़िर वाजिबुल क़त्ल
ग़ज़्वा-ए-हिन्द, दारुल इस्लाम और दारुल हरब।

इसका पहला चरण था काफ़िरों (कश्मीरी हिंदुओं) का जातिनाश।

■ मेरा पूरा विश्वास है कि कश्मीरी हिंदुओं को भी  आप नागरिक मानते होंगे और उनके जातिनाश पर भी आपने श्रद्धांजलि जरूर दी होगी। कोई एक हज़ार लोगों का संहार, इससे भी ज़्यादा बलात्कार और अपहरण। लाखों का पलायन। आप तो कथाकार और स्क्रिप्ट राइटर हैं। उनपर कुछ लिखा भी होगा। कृपया लिस्ट पोस्ट कर दीजियेगा, खरीदकर पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है।
■ वैसे आपका दर्द हाल में मारे गए कश्मीरी गैर-सैनिक मुसलमानों के लिये है जो मनसा-वाचा-कर्मणा इस्लामी राज्य पाकिस्तान के नागरिक हैं लेकिन दुर्भाग्य से काग़ज़ पर हिन्दुस्तान में रहते हैं।
आपसे क्या शिकायत जनाब जब "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा" लिखनेवाला अल्लामा इक़बाल ही मोसल्लम ईमान वाला निकला:
"हो जाए ग़र शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सज़दा न करूँ हिंद की नापाक ज़मीं पर।"
20।9।16

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