Tuesday, September 15, 2015

मुसलमानों के बीच से नेतृत्व का नहीं उभरना एक खतरनाक संकेत

मुसलमानों के बीच से नेतृत्व का नहीं उभरना मुसलमानों के लिए ही नहीं, देश के लिए भी #खतरनाक है।

जैसे #समाज के हर #पिछड़े #तबके के बीच से धीरे-धीरे #नेतृत्व उभर रहा है और वे तबके अपना वाजिब #योगदान करते हुए विकास में अपना #हिस्सा माँग और ले रहे हैं, वही बात मुसलमानों पर लागू क्यों नहीं?

ऐसा इसलिए कि #मुसलमान समाजी तौर पर बेहद पिछड़े हैं और वे नहीं चाहते कि उनका यह #पिछड़ापन जाए क्योंकि इस पिछड़ेपन पर #मजहबी_ठप्पा लगा हुआ है।#शाहबानो केस इसका ज्वलंत उदाहरण है।

दूसरी बात यह है कि #राजनीतिक पार्टियों ने मुसलमानों के इस #मजहब_पोषित_पिछड़ेपन और #दकियानुसी सोच का बेजा लाभ उठाते हुए उनमें असुरक्षा भाव को कूट-कूटकर भरा है और सुनिश्चित किया है कि वे शादी-व्याह के मामले में मुसलमान-केन्द्रित यानी यथासंभव इस्लामी नियमों को ही मानें, न कि बाकी समुदायों पर लागू #समान_नागरिक_संहिता को।
इससे विलगाव पैदा होता है, एक ऐसा विलगाव जिसे संविधान से भी मान्यता दिला दी जाती है।इसे #सेकुलर कहा जाता है।जहाँ से #सेकुलरिज़म आया है वहाँ इसे #कम्युनल ही कहा जाएगा।
#शाहिद_सिद्दीकी ने एक मार्के की बात कही है।सेकुलर पार्टियों ने मुसलमानों का #भयादोहन कर उनसे वोट रूपी #जज़िया वसूला है।न ये पार्टियाँ चाहती हैं कि यह सिलसिला रुके न ही #कठमुल्ले।यानी #हिन्दू_बहुल राजनीतिक पार्टियाँ कठमुल्लों की मदद से मुसलमानों से वोटरूपी जज़िया 65 वर्षों से वसूल रहीं है।
शायद इसीलिए #असग़र_वजाहत साहेब ने कहा है कि मुसलमानों को राजनीति नहीं, #समाज_सुधार की जरूरत है ।

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