Tuesday, September 15, 2015

सेकुलरिज़म बनाम गुगल गुरू : गुगलं शरणं गच्छामि



1. हर #व्यवस्था खुद को चलाने के लिए  फर्क और #स्तरीकरण का सहारा लेती है।सवाल यह है मनुष्य के सभी गुण-दोषों के बावजूद वह व्यवस्था #समसामयिक अन्य व्यवस्थाओं के बनिस्बत #मानवीय_और_टिकाऊ है या नहीं?

2. व्यवस्था और क्रूरता का चोली-दामन का संबंध रहा है।इसकी डिग्री जरूर विचारणीय है और यह #क्रूरता सैद्धांतिक है या अवांतर,  यह और ज्यादा विविचारणीय है।

3. #जातिव्यवस्था तो बहुत पुरानी है और उसमें जंग लगना स्वाभाविक है और #संविधान ने उस जंग को मिटाने की व्यवस्था भी की है जिसपर हमें गर्व होना चाहिए।

4. अप्रतिम घोषित #आदर्शों (प्रत्येक को जो चाहिए उसे वो मिलेगा और वह अपनी क्षमता के अनुसार योगदान करेगा) के बावजूद #साम्यवादी व्यवस्थाओं में क्या हुआ?

इनके अभी सौ बरस भी नहीं हुए।#स्टालिन राज में 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा गया जो #हिटलर के नाम हुई संख्या से कई गुना ज्यादा है।इसमें #पोल_पाॅट, #माओ, #ख्मेर_रूग आदि को जोड़ दीजिए तो फिर सर्वाधिकार नरसंहार इसी साम्यवादी व्यवस्था यानी मनुष्य को उच्चतम स्थान देने का दावा करनेवाली व्यवस्था ने किया। इसी पर एक कविता की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

जनता_को_गोली_मार_दो
जनता #प्रतिक्रियावादी हो गई है ।

5.  #सेकुलरिज़म को जन्म देनेवाले यूरोप में जो
गुलाम_प्रथा थी वह भारत की विकृत हो चुकी जातिप्रथा से कम मानवीय थी या ज्यादा?

6. सेकुलरिज़म की जरूरत उसे पड़ी जहाँ #मजहब का राजनीति में बोलबाला था और यह यहाँ तक था कि सैकड़ों बरस तक क्रूसेड हुए।

7. जहाँ 33 कोटि #देवी_देवता हों और दर्जनों मत जिनका #राजनीति से संबंध बहुत दूरगामी और गहरा न हो, वहाँ सेकुलरिज़म की जरूरत क्यों पड़ी?

8. भारत में तो इसे मजहब के बजाए जाति से जोड़ते तो लगता कि नकल करने वालों ने अकल का भी परिचय दिया है।

9. #औपनिवेशिक_सोच और #सामी_मतों (जिसमें #मार्क्सवाद भी शामिल है) की खोल से नहीं निकलने को अभिशप्त ये #बुद्धिविलासी_वर्ग आज अपनी #बुद्धिविलासिता और #बौद्धिक_नपुंसकता के श्रोतों को भी समझने में असमर्थ है।हताशा में नाहक #भाजपा, #संघ आदि को वर्तमान स्थिति के लिए  'दोष' दे रहा है जबकि असली कारण है #टेक्नोलॉजी_जनित_ज्ञान का विस्फोट और इसी से जन्मा #अस्मिता_बोध का उद्घोष।

10. #इंटरनेट और #मोबाइल ने #मानसिक_गुलामी के शिकार भारतीय #आभिजात्य_वर्ग की पोल खोलने में बड़ी मदद की है।

11.
हे #सेकुलरदास,
देना ही है तो #गुगल_गुरू को दोष दीजिए
जिन्होंने #अकादमिक मठों को औकाद बता दी है
और जिस कारण
'चाँद का मुँह टेढ़ा' हो गया है
और
'आलोचना के प्रतिमान मैले' हो गए हैं:

गुगलं शरणं गच्छामि...

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