Tuesday, January 5, 2016

असली चुनौती पाकिस्तान नहीं, हमारी पाकिस्तानी सोच है

फौज पूरे देश की है और देश फौजियों का भी है।जब तुर्क, अफगान, ईरानी, मंगोल और अंग्रेज़ हमलावर आए तो भी फौजें थीं पर उनकी कमान राष्ट्रीय हाथों में नहीं थी।अंग्रेज़ों के समय की रेजिमेंट आज भी हैं और कमाल की हैं।
इसलिए फौज को फौज की तरह देखिए, रोमानी मुल्लमा न चढ़ाइए।
असली चुनौती पाकिस्तान नहीं पाकिस्तानी सोच है जिसके वाहक देश के चप्पे-चप्पे में फैले हैं।तो पहले यह गिनिए कि देश के अंदर कितने पाकिस्तान हैं? हमारे-आपके बीच कितने पाकिस्तानी हैं?
जाने-अनजाने आप और मैं तो पाकिस्तानी नहीं बन जाते?
ये जो एनडीटीवी, खुर्शीद, अय्यर, अवार्ड वापसी गिरोह, आमिर-शाहरुख-जावेद-शबाना आदि हैं, वे तो हिमशैल की फुनगी भो नहीं हैं ।
स्कूल-कालेज-विश्वविद्यालय, दफ्तर, दुकान, होटल, बाजार, बालीवुड,अखबार, टीवी, संसद से  सड़क -कहाँ नहीं है पाकिस्तान?
इस पाकिस्तान की कलई सिर्फ सोशल मीडिया पर खुलती है, बाकी जगह उसका राज है ।
लड़ाई लंबी है पर जीत तय है क्योंकि अब अखबार और टीवी का राज नहीं है । 100 करोड़ लोगों के हाथों में मोबाइल है और वे सब के सब चलते-फिरते  अखबार-टीवी-रेडियो खुद हैं।

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