Monday, March 28, 2016

हिन्दुओ, कुरान-पाक पढ़ो , खूब पढ़ो नहीं तो...

हिन्दुओ, कुरान-पाक पढ़ो , खूब पढ़ो नहीं तो...

कुछ लोगों को लग रहा है कि वे कुरान-पाक क्यों पढ़ें?
ऐसा है भारत के मुसलमान हिन्दू ग्रंथों और उनके संदशों के बारे में अपने माहौल और संस्कृति की वजह से स्वाभाविक तौर पर अवगत होते हैं जबकि हिन्दू ऐसा सोचते हैं और इस घमंड में रहते हैं कि दुनिया भर के सारे मत उन्हीं की तरह सार्वभौमिक होंगे जो मनुष्य और प्रकृति की बुनियादी एकता पर टिके हैं।
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सबकी अपनी -अपनी राह है पर लक्ष्य एक है तो दूसरे धर्म ग्रंथों को जाने न जाने क्या फर्क पड़ता है।इसलिए एक औसत हिन्दू एक औसत मुसलमान और ईसाई के बारे में वही सोचता है जो वह खुद है।यह सनातनी बेवकूफी के सिवा कुछ भी नहीं है।
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लेकिन क्या यह सच है? नहीं, सच यह है कि हिन्दू बौद्धिक वर्ग भोलापन जनित घमंड का शिकार है जिस कारण वह गैर-हिन्दू सामी मतों के बारे में जानना भी गवारा नहीं करता।
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परिणाम? भारत की सैकड़ों साल की गुलामी और अंततः बँटवारा और वह भी मजहब के आधार पर।हिंसा से बचने के चक्कर में लाखों का नरसंहार और भविष्य के नरसंहारों की जमीन के लिए खाद-पानी भी!
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डा अंबेडकर ऐसे नहीं थे, वे जानने में भरोसा रखते थे जिसका प्रमाण है उनकी पुस्तक Thoughts on Pakistan.
बाकी के लिए असली बात तो किसी शायर ने कही है?

हम तो रहे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद....
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यह अजनबीपन ही खूनखराबे की जड़ है।इसलिए कुरान-पाक खुद पढ़ें और सबको पढ़ाएँ नहीं ताकि मुस्लिम-मानस को समझ सकें और बेहतर साझा भविष्य के लिए एक दूसरे को तैयार कर सकें।
तो रेडी वन टू थ्री...गो.........

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