Saturday, March 26, 2016

सवाल सिर्फ हिन्दू होने का नहीं है, सवाल #देशहित के साथ और विरोध खड़े लोगों का है


कुछ लोग यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि #विकासपुरी के डा #नारंग हत्याकांड में #शांतिदूतों के साथ कुछ हिन्दू भी थे।वाह! कहीं वे उसी तरह के हिन्दू तो नहीं जैसे एनडीटीवी के #प्रणय_राय या सोनिया माएनो गाँधी की काँग्रेस पार्टी के #अजीत_जोगी? (ये दोनों महानुभाव कैथोलिक ईसाई हैं यानी सुन्नी टाइप!)
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वैसे #बाँग्लादेशी लोग अपनी #पहचान छिपाने के लिए अपने हिन्दू नाम भी रखते हैं, और वे ज्यादातर यूपी, बिहार, बंगाल या असम होकर ही दिल्ली पहुँचते हैं।डायरेक्ट फ्लाइट वाले तो कम ही होंगे!
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एक और बात, #सेकुलर-#कम्युनिस्ट-लिबरल ब्रिगेड के ज्यादातर लोग तो हिन्दू नामधारी ही हैं लेकिन #कश्मीर में हिन्दुओं के #नरसंहार, बलात्कार, पलायन, जातिनाश के लिए वे #हिन्दुओं को ही जिम्मेदार ठहराते हैं, बहुमत शांतिदूतों को नहीं।
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#मालदा, #दादरी, #वेमुला, #जेएनयू मामले में #राष्ट्रवादी हिन्दू और #मानसिक_गुलाम सेकुलर हिन्दू का अंतर तो खुलकर सामने आ गया है।
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1962 के #चीनी हमले का स्वागत करनेवाले कम्युनिस्टों में ज्यादातर हिन्दू ही थे और ऐसे ही लोग आज इस्लामिस्ट-इवांजेलिस्ट गिरोहों के हमकदम-हमराह हैं।
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इसलिए सवाल सिर्फ हिन्दू होने का नहीं है, सवाल बहुमत #हिन्दूहित (बिना किसी और के वाजिब हितों को नुकसान पहुँचाये) और #देशहित के साथ और विरोध खड़े लोगों का है।आज पत्रकार #तुफैल_अहमद और राजनेता
#आरिफ_मोहम्मद_खान या लेखक #तारेक_फतह हिन्दू-हित यानी देशहित के साथ खड़े हैं ।
यह बात अलग है कि उनकी संख्या बहुत कम है, लेकिन है तो।

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