Monday, May 2, 2016

फेसबुकिया मुसलमान मित्रों से 11 सवाल

 
इधर काफी सेकुलर मित्रों ने निजी बातचीत में अपनी दुविधा जाहिर करते हुए कहा कि यार एक औसत मुसलमान बातचीत के बीच में दो-चार मिनट के अंदर ही कुराने पाक या शरिया घुसेड़ देता है, अब आगे क्या बात करें।
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इस पर मैंने कहा कि तर्क और तथ्य के साथ अपनी बात ईमानदारीपूर्वक क्यों नहीं रखते? जवाब था कि उनकी किताबें तर्कातीत हैं।
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फिर मैंने कहा कि ऐसा तो इस्लामी देशों में होता है, हिन्दुस्तान तो एक लोकतंत्र है।इस पर उनका कहना है कि ऐसी बातों पर कौन जाए अपना संबंध खराब करने।सबको पता है कि सामाजिक मुद्दों पर मुसलमान तर्क से नहीं किताब से काम लेते हैं।
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अब सवाल उठता है कि क्या सारे पढ़े-लिखे मुसलमान ऐसे ही हैं? विश्वास तो नहीं होता।फिर भी घोषित तरक्की पसंद फेसबुकिया मुसलमानों को जानने-समझने के लिए आप कुछ सवाल पूछ सकते हैं:
1. गोधरा-हत्याकांड पर आपकी कोई पोस्ट?
2. हाजी अली पर कोई पोस्ट?
3. कश्मीर से हिन्दुओं के जातिनाश पर पोस्ट?
4. हिन्दुओं के हजारों मंदिरों के ध्वंश पर पोस्ट?
5. अयोध्या विवाद पर कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत फर्जीवारे पर कोई पोस्ट?
6. फिर इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर कोई पोस्ट?
7. शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर शरिया को प्रधानता देनेवाले संवैधानिक संशोधन पर कोई पोस्ट?
8. अख़लाक़ की हत्या पर हंगामा और पुजारी की हत्या पर चुप्पी पर कोई पोस्ट?
9. इस्राइल में मुसलमानों पर अत्याचार पर हंगामा और पाकिस्तान में शिया तथा बलुचियों के नरसंहार पर चुप्पी पर कोई पोस्ट?
10. पाकिस्तान -बाँग्लादेश में हिन्दुओं की तेजी से घटती आबादी पर कोई पोस्ट?
11. याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु , दाऊद इब्राहीम, बग़दादी, लादेन, औरंगजेब, ग़ज़नी तथा मुहम्मद ग़ोरी को आइकाॅन माननेवालों और संत कबीर, रहीम, रसखान, बुल्लेशाह, आरिफ मोहम्मद ख़ान, ए आर रहमान एवं अब्दुल कलाम जैसों को समाजी तौर पर फ़ालतू माननेवालों पर कोई पोस्ट?
अगर ऐसा नहीं तो हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात बेमानी है।अलतकिया है , और कुछ नहीं ।

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