Monday, May 2, 2016

हमारी शिक्षा हमें कामचोर और काॅमनसेंसविहीन बनाती है?

क्या आपको भी लगता है कि:

हमारी शिक्षा हमें कामचोर ही नहीं बनाती बल्कि काॅमनसेंस से भी वंचित करती है?
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आत्महीनता की कुंठा से ग्रस्त ही नहीं करती बल्कि देशविरोधी भी बनाती है?
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हमारी शिक्षा-प्रणाली में गंभीर डिजाइन-डिफेक्ट है जिस कारण हर बाहरी चीज़ प्यारी और देसी फ़ालतू लगती है?
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हमारे ज्यादातर शिक्षक बौद्धिक कायरता की जीती-जागती प्रतिमाएँ है?
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"चन्द्रगुप्त तो यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं लेकिन उन्हें पहचानने-सँवारने वाला चाणक्य नदारद सा है?"

आपके जवाब की प्रतीक्षा में इस आशंका के साथ कि मेरी फेसबुक- मंडली के ज्यादातर शिक्षक अपनी जगजाहिर बौद्धिक कायरता से बाज़ नहीं आएँगे ।

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